पिछले भाग में आप सभी ने सिंधुताई के जन्म के बारे में पढ़ा ।इस भाग में आप सभी सिंधुताई के बचपन के संघर्ष के बारे में पढेंगें।
भाग २
"कैसी मां है तू, बेटी कब से रोए जा रही है तुम्हें तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ रहा।" अभिमान ने गायों को तबेले में बांधते हुए कहा।"
"बहुत दया आ है रही तो तुम ही चिपका लो ना छाती से, सारा दिन तो रोती रहती है ,मैं घर के काम करूं कि इसे लिए फिरती रहूं।"
"बेटा होता तो तब भी तू ऐसे ही बोलती ,उसकी तो एक छोटी सी आवाज पर दौड़ के चली आती ।"
मेरी तो लाडो है ,जानवर चराने ना जाना हो तो मैं तो सारा दिन इसलिए बैठा रहूं।"
"चाहे जितना लाड लडालो, जिंदगी भर यही ना रहेगी, चिरैया है उड़ जाएगी अपने गांव। बेटा होता त़ो कम से कम बुढ़ापे में सहारा तो होता । तुम्हारी भी मदद हो जाती, चार पैसे भी घर लाता।
बिटिया को पालो पोशो बड़ा करो ऊपर से दान दहेज देकर ससुराल भेज दो, मेरे ही कर्म फूट गए थे जो भगवान ने मेरे हिस्से चिंदी दे दी।"
"चल चिंदी तुझे खेतों की सैर कराता हूं ,तेरी मां को तो बड़बड़ करने की आदत हो गई ,है नन्ही सी जान से जाने किस जन्म का बैर निकालती है।"
,अभिमान ने बिटिया को गोद में उठाते हुए कहा।
पिता के सिवा सिंधु को स्नेह का आसरा कहीं नहीं मिलता था। पिता के साथ वह नन्हीं जान बहुत खुश रहा करती थी ।परिवार के अन्य सदस्य उससे देखकर झुंझलाते ही रहते थे ।किसी तरह पेट की आग बुझाते हुए सिंधु बड़ी हो रही थी ,जब उसके उम्र के बच्चे स्कूल जाने लगे तब पिता ने सिंधु को स्कूल भेजने का निर्णय लिया।
" चिन्दू,.....चिन्दू देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूं।"
"क्या है बाबा"
" स्लेट बत्ती और बस्ता अब से मेरी बिटिया भी स्कूल जाएगी, और पढ़ना लिखना सीखे गी"
" कितना मना करती हूं कि बिटिया को सर पर मत चढ़ाओ पर तुम मेरी सुनते ही कहा हो, क्या करेगी यह पढ़ लिख कर ,अब घर के काम सीखे, कितना काम होता है घर में। गोबर उठाना, गोबर के उपले पाथना, साफ सफाई करना।अब इतनी भी छोटी नहीं है कि थोड़े बहुत काम भी नहीं कर सकती, इसे घर के काम सिखाने की जगह स्कूल भेजने की तैयारी कर रहे हो। "
"काम तो जिंदगी भर करने पड़ेंगे, अभी इसके पढ़ने की उम्र है और मैं जा रहा हूं उसका दाखिला कराने"
"तुम कभी मेरी नहीं सुनते, बिटिया जात पढ़ लिख कर क्या करेगी, घर के कामकाज सीखेगी तो सासरे में काम आएंगे"
पत्नी की बात अनसुना करते हुए अभिमान बिटिया को लेकर पास की पाठशाला में चला गया।
"गुरु जी मेरी बिटिया को भी पाठशाला में दाखिल कर लो।"
"क्या नाम है बिटिया का"
"बिटिया का नाम चिंदू... ठाड़े हैं"
"ठीक है कल से बिटिया को रोज पढ़ने भेज देना"
मां का विरोध, आर्थिक तंगी, और पिता के स्नेह के साथ सिंधु ने चौथी कक्षा पास कर ली।
"कल जीजी आई थी, पास के गांव में एक लड़का बता रही थी अपने चिंदू के लिए,"
"अभी बिटिया छोटी है 10 साल की ही तो है पढ़ाई कर लेने दो फिर तो शादी होनी ही है।"
"हर जगह तुम अपनी ही न चलाया करो,बिटिया जात समय पर सासरे चली जाए तो हमारे सर का बोझ कम हो
पढ़ लिया जितना पढ़ना था।"
हमारी शादी भी तो इसी उमर में हुई थी ना, तब तो तुमने मना ना किया था।"
परिवार और पत्नी की जिद के आगे अभिमान बेटी का विवाह न रोक सका सिन्धू की शादी अपनी उम्र से 20 साल बड़े दूल्हे के साथ हो गई। जिसकी वजह से उसके पढ़ाई का सपना भी वही खत्म हो गया।। डरी सहमी बालिका अपने पिता के उम्र के दूल्हे के साथ डोली में बैठकर ससुराल आ गई।