सिंधु ताई जब रेलवे स्टेशन पर लोगों से खाना मांगती उसी दौरान वहां पर उसे कई बच्चे भोजन के लिए संघर्ष करते दिखाई दे जाते lकभी-कभी कुछ को भोजन नसीब होता तो कभी-कभी वह सभी पानी पी के सो जाते lसिंधु ताई रेल के डिब्बे में चढ़ जाती और उसमें सवार यात्रियों से भोजन मांगा करती उसे जो भोजन मिलता उसे ला करके अनाथ बच्चों को बांट कर के खिला देती जिसके पास स्वयं कुछ खाने को न था वह दूसरों को खिलाते खिलाते उन सभी की मां बन गई और उनके देखरेख की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली सिंधु उन बच्चों को अपने साथ रात में शमशान में ही रखने लगी इसी प्रकार उसका परिवार बढ़ता चला गया और वह कई बच्चों की मां हो गई सिंधु को बचपन से ही लिखने पढ़ने का बहुत शौक था वह अक्सर कुछ कविताएं लिखा करती थी परंतु पति के डर से वह उन कागजों को खा जाया करती
उसे भजन गाना भी बहुत अच्छा लगता था अतः वह रेलवे के डिब्बे में चढ़ जाती और वहां भजन गा गा कर लोगों से खाने को मांगती बीच-बीच में सिंधु अक्सर कविताएं भी कह दिया करती थी जो लोगों को बहुत अच्छा लगता इससे खुशी-खुशी लोग सिंधु को कुछ पैसे भी दे दिया करते
सिंधु की गीतो में दर्द था उसकी आवाज मे वजन था साथ ही इसके अंदर अद्भुत आत्मविश्वास और जीने की जिजीविषा थी उसे इस निष्ठुर दुनिया में जीना था खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए इसलिए बना क्योंकि मां बनती चली गई