पिछले भाग में आप सभी ने पढ़ा कि सिंधु ,बालिका के जन्म के बाद मां के घर जाने का निर्णय लेती हैl अपनी नवजात बच्ची को लेकर के बड़ी कठिनाई सेअपने मां के घर पहुंचती हैl
सिंधु को अपने घर पर देख कर मां अप्रसन्न हो जाती हैI
सिंधु के पिता का देहांत हो चुका था अतः उसे वहां आसरा मिलने की संभावना समाप्त हो चुकी थीl
मा ने उसे कटुव्यंग कहते हुए कहाl
" बेटी की मायके से डोली निकलती है, और अर्थी ससुराल सेl
तूने लोक लाज मर्यादा का जरा भी ध्यान नहीं रखा, किसका पाप लेकर मेरे दरवाजे आई हैl तुझे अपने घर में रख कर मैं समाज मे बदनामी करवाऊंगी क्या?
" मां मैं तेरी बेटी हूं , तुझे मुझ पर जरा भी यकी न नहीं है, मैंने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है l",,,
" कुलक्षनी तो क्या तेरा पति झूठ बोलता है, सारे गांव में सोर है की यह बच्ची तेरे पति की नहीं है l बिना कारण के तो उसने तुझे घर से निकाला नहीं होगा l
मेरे ही कर्म फूट गए थे कि मैंने ऐसी लड़की को जन्म दिया l
समाज को कैसे मुंह दिखाऊं समझ में नहीं आता l
तू अपने इस नाजायज बच्ची के साथ मेरे घर में ही रहेगी तो मेरा जीना भी दुश्वार हो जाएगा l
जा अपने पति के घर लौट जा , माफी मांग लेना उनके चरणों में गिरकर l
माफ करके भी तुझे दासी समझ कर घर में रख ले तो तेरा भी उद्धार हो जाएगा l उनकी सच्चे मन से सेवा कर के अपने कर्मों का प्रायश्चित कर लियोl"
मां की बातें सुनकर के सिंधु ने अपने कदम वापस सड़क की ओर मोड़ लिया l
भूख प्यास से बेहाल नव प्रसूता मंजिल से अनजान कदम बढ़ाए जा रही थीl
" क्या मुझे सच में ससुराल लौट जाना चाहिए?
उसके पास जिसने मुझे भी
निरपराध होते हुए भी, ठोकर मार के घर से निकाल दियाl
जिसके लिए मैंने सर्वस्व अर्पण कर दिया उसने मेरा तनिक भी विश्वास नहीं किया l
और यह भी नहीं सोचा कि इस अवस्था में मेरी पत्नी जाएगी कहां?
फिर मैं उससे माफी क्यों मांगू क्यों उसके पास जाऊं जिसने मुझे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया हैl
अपने मुझे अपने कोख से जन्म दिया उसने भी मुझे तनिक भी नहीं समझा न हीं मेरा विश्वास कियाl
पिताजी होते तो आज ऐसी नौबत ही ना आतीl
वे हमेशा मुझे समझते थे l पिताजी आज आपकी बहुत याद आ रही हैl
अब मैं अपनी ससुराल वापस नहीं जाऊंगी l मैं भीख मांग कर खा लूंगी परंतु दोबारा इन जगहों पर कदम नहीं रखूंगी l