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सिन्धू ताई भाग 9

10 अप्रैल 2022

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"मी सिंधुताई सपकाल"
इतना सुनते ही मराठी भारतीयों के उद्घोष से सारा हाल गूंज उठा ।
"जय महाराष्ट्र"
इस उद्घोष ने सिंधुताई के मनोबल को बढ़ा दिया और उन्होंने अपना भाषण देना शुरू किया।
" दूध में पकाएं चावल तो उसे खीर कहते हैं,
मोहब्बत में खाई ठोकर तो उसे तकदीर कहते हैं ।
लकीर की फकीर हूं मैं उसका कोई गम नहीं,
धन नहीं तो क्या हुआ इज्जत तो मेरी कम नहीं।
जिंदगी हजारों मुश्किल  लाती है ,और वही मुश्किलें हमें जीना सिखाती है बस मुश्किलों से घबराना नहीं है तुम अगर अकेले हो तो भी कदम बढ़ाओ एक दिन तुम्हारे कदमों के पीछे सैकड़ों ,हजारों और लाखों कदम होंगे। बस हारना नहीं है ।मैंने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है ,और तब जाकर मैं आज यहां पहुंची मेरे पास क्या है ?कुछ भी नहीं ।न मेरा घर, ना परिवार, ना  रिश्तेदार मैं अनाथों की मां हो गई तुम भी मेरे रिश्तेदार बनो न, मेरा पल्लू खाली है इसको भरो ना ,मैंने तुमको शब्द दिए जीने की राह बताई और तुम मेरे बच्चों को खाने को दो  ।
"मेरे जनाजे के पीछे सारा जहां निकला"
" पर वह नहीं निकले जिनके लिए जनाजा निकला"
सभी ने सिंधु का बहुत सम्मान और अभिनंदन किया। सिंधुताई पुनः वापस भारत आ गई ।सारा महाराष्ट्र उन्हें बहुत सम्मान की दृष्टि से देखने लगा,और गरीबों के लिए तो स्वयं भगवान ही है। समय ने पलटी खाई और सिंधु के परिवार को अपने किए पर पछतावा होने लगा lउनके पति उनके पास रहने के लिए आए ,माफी मांगी तब इन्होंने अपने पति को माफ कर दिया और कहाl"
"अब मैं केवल मां हूं ,बेट बनकर  आना पति बनकर नहीं"

2010 में एक प्रोड्यूसर ने समाचार पत्र में सिंधुताई  पर आर्टिकल पढा "आई हैव1000 सन एंड डॉटर "यह हैडलाइन देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। फिर वह सिंधुताई से मिलने आए और यहां उन्हें उनके जीवन के संघर्षों को सुनकर उनके ऊपर  फिल्म बनाने की इच्छा जाहिर की। सिंधुताई की स्वीकृति मिलने के बाद उन्होंने मराठी में एक फिल्म बनाई जिसका नाम था
"मी सिंधुताई सपकाल" 2010 में फिल्म बनकर तैयार हो गई जिसे बहुत सराहना मिलीl
  रियलिटी शो "नारी शक्ति" " केबीसी" जैसे कई मंच पर सिंधुताई के जज्बे को लोगों तक पहुंचाने का अवसर उपलब्ध कराया|
कुछ पत्रकारों ने सिंधुताई का इंटरव्यू लिया उन्होंने उनसे कई प्रश्न पूछे जिनका जवाब उन्होंने बेबाकी से दियाl
"ताई आपका बचपन कैसा रहा? " पत्रकार ने पूछा
"मेरा बचपन बहुत अच्छा नहीं रहा, बहुत गरीबी थी पिता चरवाहे थे घरवाले मुझे पसंद नहीं करते थे इसलिए तो मेरा नाम चिंदी रखा"
" चिन्दी क्यों"?
"वह मुझे नहीं चाहते थे ना, उन्हें बेटा चाहिए था और मैं बेटी मतलब ,मतलब मैं रद्दी कपड़ा टुकड़ा जिसे फेंक दो।ऐसे ही कुछ  भी नाम रख दिया।"
" ससुराल मे क्या माहौल था"
" ससुराल में भी वही गरीबी थी पति प्यार नहीं करते थे मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। चौथी कक्षा तक पढ़ी थी फिर मेरी शादी हो गई ।मैं रास्ते में भी कुछ कागज पड़ा  मिलता तो उठाकर पढने लगती और कुछ कविता  कहानी लिखती रहती। मेरे पति को यह पसंद नहीं था उसे लगता  मैं पति होकर भी  अनपढ़ और यह मेरी बीवी जब देखो तब पढ़ती रहती है, जलता रहता था मुझसे मेरे कागज ढूंढ ढूंढ कर जला देता था। जब मेरे कागज जलाता तो मुझे ऐसा लगता जैसे मेरा कलेजा जला दिया, इसीलिए मैं लिखती और उसे चबा चबा कर खा जाती।"
" आपको आपके पति ने घर से क्यों निकाला?"
" पंगा ले लिया था बडे लोगों से ,मरद लोग गाय चराते उन्हे मजदूरी मिलती, हम लोग गोबर साफ करते हमें मजदूरी नहीं मिलती । तो मेरे कारण जिसका का बुरा हुआ उसी ने बदला लेने के लिए  मेरे पति को भड़काया यह बच्चा मेरा है तो पति ने निकाल दिया ।
यह भी कुछ कम नहीं,
तेरा दर छूटने के बाद।
हम अपने पास आए,
दिल टूटने के बाद।
"आप खुद मुसीबतमे थी ऐसे मे दूसरे बच्चो को कैसे पाला ?"
" अकेले खाते तो विकृति बनती , बांट के खाया तो संस्कृति बन गई ।हर एक से कहा "अनाथ की माई सिंधुताई"
" यादें है आप के वादे हैं"
इससे जिंदगी नहीं कटती।
टरका दो इरादे हैं,
फिर भी जिंदगी में खुशी है ,
आस तो है दिल में बहार है।
मैं मर नहीं सकती,
अभी मैं मर नहीं सकती,
क्योंकि आपका इंतजार है।"
" ताई आप शमशान मेँ रहती थी, वहां पर डर नहीं लगता था ।"
"लगा ना डर मैं, भी छोटी 20 साल की थे लोगों के डर से श्मशान में रहती थी तब डर नहीं लगता था। जिस दिन मैंने श्मशान में रोटी बनाकर खाई मुझे बहुत डर लगा, ऐसा लगा था जैसे सभी मुर्दे खड़े होकर मुझे देख रहे हो ,कुत्ते भोकरहे थे ऐसे लग रहा था कि सब बोल रहे हो कि यह मेरा अधिकार है, तुम इंसान हो तुमने हमारा कायदा भंग किया है।सियार चिल्ला रहे थे। मुझे लगा अब क्या करूं अब क्या करूं। बाजू में किसीने ताजा मुर्दा  गाड़ा था ,उसे देख कर मुझे ऐसा लगा कि गडा हुआ मुर्दा मिट्टी से बोल रहा है ।सिन्धू थक गई हार गई तो मैंने सोचा मरना भी नहीं डरना भी नहीं जीना है कुछ करना है अपने लिए नहीं दूसरों के लिए।"
"सुना है आप ने अपनी बेटी दूसरों को दे दी ""
" मैं मेरी बेटी साथ रखती तो दूसरों के बच्चों के साथ गलती कर सकती थी ।मुझे ऐसा लगता था कि तू तेरे बच्चे को ज्यादा खिलाएगी और दूसरे के बच्चों को पानी पिला कर सुला देगी। यह गलती मां कर सकती है, इसीलिए मैंने अपनी बच्ची को पुणे के गणपति हलवाई ट्रस्ट को दे दिया। और दूसरे के बच्चों की मां बन गई कभी-कभी मुझे डर लगता था कि मेरी बच्ची मुझसे पूछेगी कि मेरी मां कहां है? मेरी बेटी अब डबल ग्रेजुएशन हो गई है एक दिन मेरी बेटी से एक पत्रकार ने पूछा ममता तेरे को क्या बनना है ?
" वह बोली मेरे को मेरे मां की मां बनना है जब हम जीना सिखाते हैं तो लोग अपने साथ आते हैं धीरे-धीरे कारवां बन जाता है मां का दर्जा ईश्वर से भी बड़ा है संकटों को थैंक यू बोलो क्योंकि वो रास्ता दिखाता है सही राह अपने को मिलाते है।"
" आपके पति को आपने फिर अपने पास में ही रखा था"
" जिस पति ने निकाला उसे मैंने माफ किया। जिस ससुराल वालों ने हाथ पकड़ कर निकाला वहीं फूल डाल डाल कर के मेरा स्वागत किया। और जब मैं गई तो मेरे पति रो रहे थे ।तब अपने पल्लू से उनके आंसू पोंछें और कहा
"रो रहे हैं आप"
"जब आपने मुझे निकाला था तब मैं भी रो रही थी अब कोई बात नहीं 50-50 का हिसाब बराबर हो गया। अब अब आप रो मत आपकी हालत बहुत खराब है ,तब मेरी साड़ी फटी थी और अब आप की धोती फटी है। पर मेरे घर पति बनकर मत आना बच्चा बन कर आना अब मेरे सब रिश्ते खत्म हो गए अब मेरे पास एक ही रिश्ता बचा है। मां बनने का फिर मैं उन्हें घर लाईऔर मेरे बेटे को
बताया इन्होंने मुझे नहीं छोड़ा होता तो तुम सबको मां कैसे मिलती 5 बरस साथ रहे फिर चले गए मैं मां रह गई।"
" जब आपकी जीवन के ऊपर फिल्म बनी तो आपको कैसा लगा?"
" 2010 में फिल्म बनी तब उन्होंने मुझे फिल्में दिखाई । मुझे खूब रोना आ रहा था, और मैं मैंने अपने आसपास देखा मेरे आसपास के सभी रो रहे थे तो मैंने मेरा रोना कैंसिल कर दिया। फिल्म देखने के बाद रोज औरतों के फोन आते वह बोलती  कि मैं मरना चाहती थी पर आपकी फिल्म देखकर हौसला मिला सुनकर अच्छा लगता था।"
"अब आपके बच्चे बड़ी बड़ी पोस्ट पर कार्यरत है आपको कैसा लगता है ?"
"बहुत खुशी मिलती है अच्छा लगता है मेरे बच्चे भी अब मेरे इस नेक काम में मेरी मदद करते हैं"
" यूं ही थम जाए,
ये वो शोर नहीं।
मां हूं मैं ,
मगर कमजोर नहीं।"
ऐसे ही अनेकों इंटरव्यू सिंधुताई के जीवन का हिस्सा बन गया अपने कर्तव्य पथ पर आज भी अनवरत लगी हुई है ऐसे महान हस्ती को मेरा बारंबार सलाम ,नमन, वंदन, अभिनंदन।
                                                  .           (समाप्त)


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