सिंधू ममता की प्रतिमूर्ति थीं, उन्हें रास्ते में जो कोई भी गरीब ,अनाथ, असहाय बच्चा मिलता उसने वह उठा लेती, और स्वयं भीख मांग कर लातीऔर उनको खिलाती , उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे वो श्मशान में जो लाशों के पास लोग कपड़े छोड़ जाते वह उन्हें ही पहना करती ।
वह स्वयं अभावों में जूझ रही थी परंतु दूसरों की मदद करने की भावना उसमें कूट-कूट कर भरी हुई थी इसी भावना के चलते उन्होंने गांव के पास रहने वाले आदिवासियों की मदद की जिससे आदिवासी बहुत खुश हुए और उन्होंने सिंधु को झोपड़ी बनाकर के दे दी।
अभी सिंधु और उसके परिवार के लिए छत की व्यवस्था हो गई ,पर खाना खाने के लिए केवल छत होना पर्याप्त नहीं है ।उसके लिए कमाना पड़ता है और अब सिंधु का परिवार ही बड़ा हो रहा था, इसलिए सिंधु अब रेलवे स्टेशन और डिब्बों में भीख मांगने के साथ-साथ आसपास के गांवों में होने वाले उत्सव और जलसों में गाने गाती और साथ ही भाषण देती। उनके भाषण प्रेरणादाई और दर्द भरे होते थे अक्सर अपने भाषण में वह अपनी जिंदगी की कहानी भी बयां करती थी, जिस से द्रवित होकर लोग उन्हें और उनके बच्चों के लिए उन्हें ज्यादा पैसे देते । अब सिंधु चिन्दू से सिंधुताई बन चुकी थी उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास था, परंतु उनके दिल में एक डर भी था
कि अपनी बेटी ममता को साथ में रखने पर वह कहीं दूसरे के बच्चों में भेदभाव ना कर बैठे इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को गणपति हलवाई ट्रस्ट को दे दिया ताकि वे दूसरे के बच्चों का पालन पोषण निष्कपट हो कर सके। धीरे-धीरे आस-पास के गांव में उनकी पहचान बन रही थी अतः एक दिन उन्हें पास के गांव में होने वाले कार्यक्रम में भाषण देने के लिए बुलाया गया।
माई आज रेलवे स्टेशन नहीं जाओगी देर हो रही है"सिंधु के एक बेटे ने कहा।
"नहीं ,आज मुझे भाषण देने के लिए पास के गांव में जाना है तुम बड़े हो और अपने बाकी सभी भाई बहनों को लेकर घर में रहना मैं जल्दी ही आ जाऊंगी तुम सब के लिए ढेर सारा खाना लाऊंगी "
"ठीक है माई"
पहली बार सिंधु ने स्टेज पर खड़े होकर भाषण दिया पर उनके अंदर डर नाम की चीज नहींथी और उन्होने ने अपनी बात कहनी शुरू की ।
" मुझसे तू खाने की न पीने की बात कर,
मर्दों की तरह दुनिया में जीने की बात कर।
जिस मातृभूमि की अरे तू गोद में पला,
जिसकी पवित्र धूल मे घुटनों के बल चला।
उसके फटे आंचल को सीने के बात कर,
मर्दों की तरह दुनिया में जीने की बात कर
मुझसे तू न खाने की न पीने की बात कर
मर्दों की तरह दुनिया में जीने कीबात कर"
सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सिंधु ने आगे कहना शुरू किया।
" हम अक्सर जिंदगी में मुश्किलों से घबरा जाते हैं एक दिन ऐसा आता है कि दीए में तेल नहीं होता चारों तरफ अंधेरा छा जाता है तब उस दिए वे अपने आंसू डालें और आंसुओं से प्रकाशित करें हारना नहीं डरना भी नहीं आसूं तो खारा होता है मीठा नहीं और यह मीठा और खारा तो जीवन भर साथ चलता है ।
मंजिल बहुत दूर है ,जाना जरूर है
रास्ता मुश्किल है, मगर मरना मंजूर है,
अपने लिए नहीं औरों के लिए ।
अंधेरा तो हर दिन आता है तुम दिया जलाओ बेटा ,तूम उजाले का निर्माण करो, इतना उजाला निर्माण करो कि सब खुद तुम्हारे पास आ जाएंगे और दुनिया देखेगी कहां है वह ,कहां है वह ,"मैंने किया है ना"
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा समा गूंज उठा सिंधुताई ने सबसे कहा
" मैं तो अनाथ बच्चों की मां बन गई और तुम सब उनके ,मेरे रिश्तेदार बन जाओ मेरे बच्चों के खाने की व्यवस्था करो "
और सिंधुताई को भरपूर मदद मिली अब सिंधु ताई के पास खाने के साथ-साथ कुछ पैसों का भी इंतजाम हो गया उन्होंने अपने साथ में रहने वाले सभी बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। वह स्वयं पढ़ना चाहती थी, परंतु तत्कालीन परिस्थितियों के कारण वह अपनी इच्छा पूरी न कर सकी परंतु शिक्षा का महत्व उन्हें पता था वह बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भेजने लगी। और बच्चों से कहती तुम सब इतना पढ़ो लिखो कि तुम्हें कभी किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े गरीबी का मुंह देखना पडे।
इसी तरह सिंधुताई का परिवार बढ़ता चला गया और जीविका का साधन उनके गीत और भाषण थे ।लोग इस नेक काम के लिये स्वयं आकर उनको मदद किया करते समय बीतता गया उनके पाले बच्चे बड़े होते चले गए अब धीरे-धीरे वह भी काम करना शुरू कर दिए ।
कमल कीचड़ में ही खिलते हैं और जब देखभाल करने वाला सिंधुताई के जैसा हो तो ,उनकीप्रेरणा, परवरिश और आचल की छांव में उनके बच्चे पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, नर्स इत्यादि पदों पर नियुक्त हो गए।
अब सिंधुताई को जगह-जगह भाषण के लिए बुलाया जाने लगा और उन्हें पुरस्कृत किया जाने लगा।
उन्हें देश के राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री के हाथों से भी पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया माननीय अटल बिहारी बाजपेई, प्रणब मुखर्जी, नरेंद्र मोदी ने उनकी ममता को नमन और पुरस्कृत किया देखते-देखते उनके कुनबे में हजारों की संख्या में बच्चे एकत्रित हो गए उनके 250 दमाद 50 बहुएं और 750 पुरस्कार की उपलब्धियां हासिल हुईं, जो आज भी अनवरत जारी है।
2009 में उन्हें अमेरिका में भाषण के लिए आमंत्रित किया गया ।वह अपनी बेटे के साथ अमेरिका पहुंच गई।
पहली बार इतना बड़ा देश, इतने बड़े-बड़े लोग, सिंधुताई को बहुत डर लगा कि मैं कैसे यहां पर बोलपाऊंगी ,भाषण दे पाऊंगी। वहां तो सब अपने लोग थे पर जब वह वहां पर वहां का माहौल देखा तो उन्होंने सोचा।
"मेरे देश को तो लोग भारत माता कहते हैं और अमेरिका तो को तो कोई मौसी भी नहीं कहता। और मैं तो मां हूं ।हर अनाथ की माई सिंधूताई।
फिर उन्होने अमेरिकी मंच पर बोलना शुरू किया ।