सिंधुताई इस सदी की महानायीकाओं में से एक है उन्होंने स्वयं संघर्ष में जीवन बिताते हुए, हजारों अनाथ बच्चों की मां बनी और उनका मां की तरह पालन पोषण कर उन्हें नई जिंदगी प्रदान की। आज मैं अपनी रचना के माध्यम से उनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं को अपने शब्द दूंगी।
आशा है मेरी इस रचना को आप सभी का स्नेह प्राप्त होगा।
सिंधुताई
भाग १
नवंबर की गुलाबी ठंड में, जहां गांव के लोग अंधेरा होते ही घरों में दुबक जाते हैं वही गांव के एक चरवाहे के घर के लोगों की नींद उड़ी हुई थी पुरुष और महिलाओं में अफरा-तफरी मची हुई थी।
अभीमान, जा जल्दी से दाई को बुलाकर आ लगता है जचकीका समय नजदीक आ गया है बहु पीड़ा के मारें मरी जा रही है। सुबह तक इंतजार ना होवेगा।
प्रसव कक्ष में दाई ने प्रवेश किया , परिवार के अन्य सदस्य
प्रसव की चित्कार के साथ बालक के रुदन का इंतजार करने लगे।
कुछ समय बाद उनका इंतजार खत्म हुआ और एक नन्ही मेहमान ने जन्म लिया । शिशु जन्म के उपरांत हर्षोल्लास के बजाय , घर में मरघट सी मायूसी छा गई,।
क्या हुआ अम्मा सब ठीक तो हैॽ
हां सब ठीक , गरीबी मे भगवान से कपड़ा मांगा था पर चिन्दी देदी।
क्या बोल रही हो अम्मा मेरे तो कुछ भी समझ नहीं आया?
यही की बिटिया हुई है चिन्दी आ गई है घर में।