सनातन वृक्ष की एक ही प्रकृति (अयन) है, दो फल हैं-(सुख तथा दुख), तीन मूल हैं (सत, रज, तम), चार रस हैं (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष), पंच विध (पंचेंद्रिय), छ: स्वभाव (उत्पन्न होना, स्थिर होना, बढ़ना, परिवर्तित होना, घटना और नष्ट हो जाना), सात वल्कल (रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य), आठ शाखा (पंच भूत तथा मन, बुद्धि अहंकार), नौ आँखें ( शरीर में स्थित मुख आदि नवद्वार), दस कोटर (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान आदि दस प्राण) तथा दो पक्षी जीव और ईश्वर हैं- एकायनोऽसौ द्विफलस्रिमूलचतूरस: पंचिविध: षडात्मा।
सप्तत्वगष्ट विटपो नवाक्षो दाच्छदी द्विखगो हृदिवृक्ष:। -भाग. १०.२.२७