मानवीय-सम्बन्ध सदियों से दर्शन और साहित्य के अध्ययन का मुख्य विषय रहा है. जब भी हम मानवीय सम्बन्धों के विवेचन पर जाते है तब हम इनकी प्रकृति, व्यक्तिगत और सामाजिक सम्बन्धों की प्रमाणिकता के सम्बन्ध में बात करते हैं और हम केवल दार्शनिक विचारों तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि हमें मनोविज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, राजनीतिक विचारकों के साथ-साथ साहित्यकारों द्वारा दी गयी व्याख्याओं का भी अध्ययन करना पड़ता है क्यूंकि यह अन्तर्रविषयी अध्ययन का विषय है. जब भी मानवीय सम्बन्धों का दार्शनिक अध्ययन करते हैं तो हमें मानवीय प्रकृति, नैतिक मूल्यों, ज्ञान का क्षेत्र, राजनीतिक-स्वतन्त्रता और अनिवार्यता इत्यादि दर्शन के विभिन्न पहलुओं को भी समझना पड़ता है. प्रेम की प्रकृति (the nature of love), मित्रता (friendship), आत्माभिरुचि एवम अन्य (self-interest and others) , दूसरों से सम्बन्ध (relationships with strangers) और सामाजिक-सहभागिता (social participation) इत्यादि इस अध्ययन की विषयवस्तु में सम्मिलित है.