जब हम किसी भारतीय विचारक कि चर्चा करते हैं तब दो बातों पर पूरा ध्यान देते हैं। पहली बात तो यह है कि इस विचारधारा का भारत भारत के ज्ञान के भंडार को क्या योगदान है. मतलब है, इस विचारक का भारतीय समाज से क्या सरोकार है ? इसने समाज की समस्याओं को किस तरह उठाया है और दूसरा क्या निदान दिया है। और दूसरी बात यह है कि इस विचारक कि विचारधारा क्या है। कोई भी विचारक शून्य में काम नहीं करता। उसकी एक निश्चित विचारधारा होती है। यही उसका संदर्भ होता है. विचारधारा और कुछ न होकर व्यक्ति के विश्वास और मूल्य होते हैं। इसी के अनुरूप वह काम करता है। अम्बेडकर की विचारधारा बहुआयामी है। यह निश्चित है कि वे जिस तत्कालीन समाज की समस्याओं से घिरे हुए थे , उससे उन्होंने कभी भी मुहँ नहीं फेरा। वे बराबर उससे जूझते रहे। उन्हें क्लासिकल उदारवाद से कोई मोह नहीं था। वे केवल सामाजिक विचारक ही नहीं थे , बल्कि क्रियान्वयक भी थे।
यह सब होने पर भी गांधीजी को महात्मा और राष्ट्रपिता समझा जाता है और अम्बेडकर केवल एक दलित नेता होकर ही रह गये। वे राष्ट्रिय नेता क्यों नहीं हो पाये, वे महात्मा अम्बेडकर क्यों नहीं बन पाये ? ये प्रश्न अप्रासंगिक नहीं है , हमें लगता है कि हिन्दू बहुल इस देश का मानस अभी किसी दलित को महात्मा या राष्ट्रपिता कहने को तैयार नहीं है। अभी आने वाले कुछ वर्षों तक ब्राह्मणों और बनियों का ही राज चलेगा।
संदर्भ :
भारतीय सामाजिक विचारक : एस. एल. दोषी , रावत पब्लिकेशन्स , २०१०