वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
.या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
टुनटुनटुनटुनटुनटुनटुनटुन
"लता !!लता!!लता!! सुबह से तीसरी बार पूजा कर रही हो , कितनी बार करोगी !!जाओ और साडी़ बदल लो"सुरेंद्र राय ने मंदिर में आकर पत्नी लता से कहा मगर वो अपना एक हाथ उन्हें दिखाकर और दूसरे से घण्टी बजाती रही -टुनटुनटुनटुनटुनटुनटुनटुन
फिर घण्टी रखकर भगवान के आगे हाथ जोड़कर उनकी तरफ पलटी और बोली -" मुझे देखने के लिये लड़के वाले न आ रहे हैं ,जिसे देखने आ रहे हैं वो तैयार हुयी कि नहीं !!देखूं ,हटिये सामने से "और आंगन में आकर आवाज लगाई -"जिज्ञासा !!तुम्हारी मालविका दीदी तैयार हुयीं कि नहीं !!!"
ऊपरी मंजिल के काॅरीडोर की रेलिंग पर आकर जिज्ञासा बोली -"माँ मालविका दीदी साडी़ पहन रही हैं फिर मैं उन्हें तैयार होने में मदद कर दूंगी ,आप परेशान न हो अभी आठ बजे हैं और लड़के वाले तो नौ बजे आने वाले हैं ना !!"
"हाँ पर तैयार होने में समय तो लगता है और ये प्रतीक्षा कहाँ है !!!" ---प्रतीक्षा !!!प्रतीक्षा !!!
वहीं ऊपर मंजिल के काॅरिडोर की रेलिंग से नीचे झांकती हुयी प्रतीक्षा बोली --"हाँ मां !!"
"मां की बच्ची !!ऊपर ही लटकी रहो ,दोनों की दोनों !!जरा छोटू को फोन लगाओ ,वो अपने होटल से मिठाइयां व कोल्डड्रिंक ले आये वरना सब आ जायेंगे तो क्या उनके सामने लायेगा !!!"
तुमने बुलाया और ,हम चले आये ,
मिठाइयां झोले में ले आये रेऐऐ !!! टेनटेडे़न !!! मिठाइयां और कोल्डड्रिंक प्रस्तुत है आपकी सेवा में माँ !!!"
"हा !!हा!!हा!!हा!! छोटू तुझसे कितनी बार कहा है इतना सुरीला न गाया कर !!!"ऊपर ही खडी़ प्रतीक्षा हँसते हुये बोली।
"क्या प्रतीक्षा दीदी ,ऊपर से खी खी कर रही हो !!नीचे आकर माँ की मदद कराओ !!!"छोटू झोला पकडे़ हुये बोला।
"अब तुम दोनों शुरू मत हो जाओ ,और तुम ,ये मिठाइयां व कोल्डड्रिंक फ्रिज में रखो जाकर ,अच्छा लाओ मैं ही रख देती हूँ और तुम ,उनके आने से पहले गर्म समोसे,खस्ते सब ले आना ,!!!" लता छोटू के हाथ से झोला लेकर किचन में जाने लगी ।
छोटू चला गया ।लता के पीछे पीछे सुरेंद्र राय आये और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले -"लता ,तुम थोडी़ साँस ले लो ,बैठ जाओ कुछ देर ,,, सब सही होगा इस बार !!!"
"क्या सही होगा , पता नहीं इस बार क्या होगा !!क्या लिखा है हमारी मालविका के भाग्य में , वो बिलकुल भी सुंदर नहीं ये आप भी जानते हो जिसकी वजह से कहीं रिश्ते की बात ही न बनती है ।
पहली बार जहां फोटो भेजी गयी वहां फोटो से ही नापसंद हो गयी ।दूसरी बार लड़के वाले देखने आये और क्या हुआ था ,याद है आपको !!लड़के के पिता बोले थे - आपकी बेटी जिज्ञासा का रिश्ता तय कर लो , आपकी भतीजी मालविका से वो कहीं ज्यादा सुंदर है और दबी जुबान में उनकी पत्नी बोली थीं -मालविका तो बहुत बद्सूरत है !!!
तीसरी बार भी लड़के वालों ने पसंद न किया ,ये चौथी बार है !!
अब देवर व देवरानी जी तो रहे नहीं तो मालविका हमारी जिम्मेदारी है मगर यूं रिश्ता न बनने से वो हीन भावना ग्रस्त न हो जाये क्योंकि वो भी जानती है कि वो बद्सूरत है ।" लता अपनी साडी़ का पल्लू हाथ से उमेंठती हुयी उदास होकर बोली ।
"लता ,जिनकी तीसरी बार पूजा की है ,सब उनपर छोड़ दो और कपडे़ बदल लो जाकर ,हमारी मालविका के भाग्य में इन्होनें अच्छा ही लिखा होगा , देर है बस कुछ ।"सुरेंद्र राय बोले और लता साडी़ बदलने चली गयी ।
सुरेंद्र राय , जिनका बहुत बडा़ घर था ।घर के बगल में उनका अपना होटल था ।घर के बीचो बीच बडा़ सा आंगन था ।आंगन के एक तरफ एक पूरा पोर्शन था नीचे और उसके ऊपर ।आँगन के दूसरी तरफ एक पूरा पोर्शन था नीचे और उसके ऊपर ।दोनों पोर्शन का ऊपर एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक एक ही काॅरीडोर था ।बायें तरफ का पोर्शन सुरेंद्र राय का था और दाहिनी तरफ का पोर्शन मालविका के माँ और पिता का था जो अब थे नहीं ।
सामने नीचे पूजा घर व रसोंईं थी और कोने में गलियारा बना था जहाँ लैट्रिन व बाथरूम था ।रसोंई व पूजा घर बरामदे में थे जो बडा़ था और वहीं डाइनिंग टेबिल पडी़ थी ।
ऊपर दोनों तरफ के काॅरीडोर में नीचे के लिये आती हुयीं सीढियां बनी थीं ।बायीं तरफ के पोर्शन से नीचे आने के लिये बायीं तरफ और दाहिने पोर्शन से नीचे आने के लिये दाहिनी तरफ ।
स्वयं का बडा़ सा होटल तो था ही सुरेंद्र राय का इसके अतिरिक्त एक बहुत बडा़ व खूब चलता हुआ रेस्ट्रां भी था।
इसके अलावा था एक अनाथालय जो मालविका के पिता ने खोला था पर अब वो थे नहीं तो उसकी देखरेख भी सुरेंद्र राय ही करते थे ।
"आपने साडी़ पहन ली ।बैठिये मालविका दीदी अब आपको तैयार कर देती हूँ मैं ।" जिज्ञासा ने मालविका को बिठाल कर अपना फोन एक तरफ रखकर मेक अप का डिब्बा उठाया और उसका मेक अप करने जा रही थी कि मालविका उदास होकर बोली --"मेक अप क्या मुझे सुंदर बना देगा !!बदसूरत हूँ तो बदसूरत ही रहूंगी ।"
"मालविका दीदी !! आप ये सब न कहा करें आपसे कितनी बार कहा मैंने !!" जिज्ञासा मालविका के चेहरे पर फाउंडेशन लगाती हुयी बोली ।
"तो क्या कहूं !!सुंदर होती तो लड़के वाले पसंद कर लेते और ताऊ जी और ताई जी की चिंता खत्म होती ।" मालविका उदास होकर बोली ।
साँसों की जरूरत है जैसे,
जिंदगी के लिये,
बस एक सनम चाहिए ,
आशिकी के लिये ,
"दीदी एक मिनट मेरा फोन बज रहा है ,मैं आती हूँ तब तक आप चोटी कर लो " कहती हुयी जिज्ञासा फोन आॅन कर कमरे से बाहर आकर अपने पोर्शन में जाती हुयी कहती है --हेलो , जयेश !!!
जिज्ञासा , हाय !!!आज तो तुम्हारी मालविका दीदी को फिर लड़के वाले देखने आ रहे हैं न !!
हां जयेश , देखो क्या होता है !!!!
यार ,इस बार रिश्ता पक्का हो जाये तुम्हारी मालविका दीदी का ,तो अपने लिये हरी झण्डी़ मिले तो फिर हमारी शादी की बात हो ,तुमने अपने घर में बता तो दिया है न कि तुम मुझसे प्यार करती हो और शादी करना चाहती हो !!!
जयेश ने कहा तो जिज्ञासा बोली- ना बाबा ना ,मैं अपने घर में न बता सकती हूँ ,एक बार मालविका दीदी की शादी हो जाये फिर तुम ही अपने घरवालों को भेजना मुझसे शादी करने की बात करने के लिये ।
क्या यार ,तुम कितना डरती हो ,मैंने तो अपने घर में बता दिया है और वो कह रहे कि जहां कहोगे हम कर देंगे ।हम काॅलेज के समय से एक दूसरे को प्यार करते हैं ,अब हमारी पढा़ई पूरी हो चुकी है तो तुम्हारी मालविका दीदी का विवाह ही न हो रहा है ,जब तक उनका न हो रहा तब तक हमारा न हो सकता क्या !!!
जयेश ने कहते हुये पूछा ।
कैसी बातें करते हो !!बडी़ बहन के होते छोटी का ब्याह पहले कैसे कर देंगे !!!मालविका दीदी पापा की जिम्मेदारी हैं ,उनका हो जायेगा तभी मेरा होगा ,अब फोन रखो , बाद में करती हूँ ,कहकर जिज्ञासा ने फोन काटा और काॅरिडोर से होते हुये मालविका के पोर्शन में उसके कमरे में गयी जहां वो तैयार हो चुकी थी।
मालविका देखने में बदसूरत थी , रंग दबा पर कमर तक बहुत घने बाल थे । एक लड़की की जितनी आदर्श लम्बाई होती है उतनी लम्बी थी ।सदा हल्के रंग के कपडे़ उसे पसंद आते थे ,वही वो पहनती थी पर आज धानी रंग की साडी़ उसने पहनी हुयी थी ।
जिज्ञासा , जो अच्छी स्वस्थ थी ।कंधे तक बाल जो घुंघराले थे ।नाक नक्श से सुंदर थी ,रंग मां पर गया था गेहुआं रंग ,लम्बी नाक , सुंदर होंठ व आँखें बडी़ बडी़ ।
कहने को तो जितने कमरे ऊपर थे उतने नीचे थे पर जिज्ञासा और प्रतीक्षा के साथ साथ मालविका भी ज्यादातर ऊपर की मंजिल पर ही रहती,नीचे केवल सुरेंद्र राय व उनकी पत्नी लता रहते ,रसोंई नीचे थी ,खाना खाने तो तीनों नीचे आतीं पर खाते ही सीधा ऊपर ,,,, नीचे किसी को अच्छा ही न लगता था ।
"दीदी आप बहुत प्यारी लग रही हो !!!" प्रतीक्षा ने मालविका के पीछे खडे़ होकर उसके कंधों पर हाथ रखकर कहा ।
प्रतीक्षा बहुत गोरी थी ।वो अपने पिता पर गयी थी।भरा भरा चेहरा , आँखें बडी़ , सुंदर नाक व पतले होंठ थे उसके ,बाल उसके भी कंधे तक ही थे ।उसे तो जींस व टीशर्ट पहनना अच्छा लगता था तो वही पहनती थी ।
"तुमको और जिज्ञासा को तो मेरी झूठी प्रशंसा करनी आती है बस !!!अपनी दीदी का मन रखने को कहती हो न !!!"मालविका ड्रेसिंग टेबिल के सामने से उठकर बेड पर बैठती हुयी बोली ।
"नहीं दीदी , जिज्ञासा दीदी सच कहती है ,आप ना , सबसे सुंदर हो ,जरा हमारी नज़र से तो स्वयं को देखो ,तब समझ पाओगी ।"प्रतीक्षा ने कहा और जिज्ञासा बोली -" हाँ वो तो है ही , लव यू दीदी !!!"
ऊपर इन तीनों की बातें चल रही थीं ,नीचे लता साडी़ बदल कर आइने के सामने चोटी कर रही थी । लता , जिसके चेहरे की बनावट बहुत अच्छी थी ,रंग गेहुआं था और डील डौल से सही थी ।
लता को चोटी करते सुरेंद्र राय देख रहे थे ।
"ऐसे क्या टुकुर टुकुर देख रहे हो आप !!बाहर बरामदे में बैठो जाकर किसी भी समय लड़के वाले आते होंगे ,और जरा बच्चियों से पूछो मालविका तैयार हो गयी !!!"
"अरे ,मालविका तैयार हो गयी होगी अब तक ,देख रहा हूँ तुम तो अभी भी उतनी ही सुंदर हो जितनी तब थीं जब तुम्हें ब्याहने गया था ।"
लता चोटी कर कमरे से बाहर आती हुयी बोली -"आप को बस बातें करने को दे दो , जिज्ञासा ,प्रतीक्षा !!!" आगे वो कहतीं कि प्रतीक्षा ऊपर से बोली -"मां दीदी तैयार हो गयी है !"
सुरेंद्र राय , जो लम्बे ,चौढे़ थे ।रंग गोरा ,छोटी आँखें,भरी भरी मूंछ व रौबीले लगते थे ।चेहरे पर गंभीरता झलकती थी।
जलेबियां तलते हुये छोटू स्वयं से कह रहा था इस बार मालविका दीदी का रिश्ता तय हो जाये ,भगवान सुन लो न ,मालविका दीदी तो कितनी अच्छी हैं , सबसे कितना प्यार करती हैं ,हां मितभाषी हैं पर व्यवहार कितना अच्छा है उनका । वो ही तो थीं जिन्होनें मुझ होटल पर काम करने वाले मामूली से नौकर को रक्षाबंधन पर घर बुलाकर राखी बांधी थी और कहा था ,आज से तुम मेरे भाई हो ।फिर जिज्ञासा दीदी व प्रतीक्षा दीदी ने भी राखी बांधी ये कह कि हमारे भाई नहीं था पर अब तुम हमारे भाई हो ।
वो मालविका दीदी ही हैं जो मेरे रात को होटल से आते ही मुझे पकड़कर जबरन पढा़ने बिठाल लेती हैं ये कहकर कि छोटू पढा़ई ,लिखाई बहुत आवश्यक है । उन्हीं ने दसवीं का व्यक्तिगत फार्म भरवा दिया और मुझे बहुत प्यार से पढा़या ।इम्तेहान दे आया हूँ दसवीं के अब परिणाम आने हैं ।
उनका रिश्ता तय कर दो न भगवान !!!
लता रसोंई में नाश्ते के लिये नयी प्लेटें,चम्मच ,ग्लास सब एक जगह रख रही थी , कि आयें तो नाश्ता प्रतीक्षा व जिज्ञासा लगा देंगी इनमें और मालविका ले आयेगी ।
अनाथालय , जहां के एक कमरे में एक बूढी़ औरत माला फेरती हुयी मन ही मन कह रही थी - हे ठाकुर जी मालविका का रिश्ता तय कर दो ,वो बच्ची दिल की बहुत अच्छी है , हर दिन अनाथालय आकर सबका हाल लेती है पर मुझसे उसका विशेष स्नेह है तो मेरे पास बैठकर बातें करती है , मेरा ध्यान रखती है ।उस दिन घुटने में दर्द था तो मानी नहीं और मालिश की उसने ।
लता घडी़ देख रही थी ।पौने नौ हो गया था ।छोटू गर्म गर्म जलेबियां ,समोसे ,पकौडे़ ,सब लेकर आया और बोला -"लो माँ ,जिज्ञासा दीदी या प्रतीक्षा दीदी से अब प्लेटें लगवाकर रख लो ,वो सब आते ही होंगे ,मैं होटल पर जा रहा हूँ ।"
कहता हुआ छोटू चला गया और जिज्ञासा ,जिसने ऊपर से छोटू को देख लिया था आते ,वो नीचे आकर प्लेटें लगाने लगी और प्रतीक्षा उसकी मदद करने लगी ।
नौ बजकर दस मिनट हो गये थे और लता बार बार अपनी साडी़ का पल्लू उमेठते हुये बरामदे में लगी घडी़ देख रही थी ।तब तक दरवाजे पर दस्तक हुयी ,जो खुला हुआ था और फिर लड़के वालों ने अंदर प्रवेश किया ।
जिज्ञासा,प्रतीक्षा ,लता और सुरेंद्र राय सब बरामदे में बैठे थे ।लड़के को देखकर जिज्ञासा एकदम से उठ खडी़ हुयी उसकी त्योंरियां चढ़ गयीं ।बाकी सब भी देखकर हैरान रह गये...............
पर आखिर क्यों !!!!!!
शेष अगले भाग में ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'