ज्यों-ज्यों सुरीली की मंज़िल करीब आ रही थी,
त्यों-त्यों सुरीली की धड़कन बढ़ती जा रही थी |
आठ बरस बाद वो अपने घर को देख रही आज,
जिसे उसके पति ने बनाया था मसक्क्तों के बाद |
दिव्या हौले से अपनी दादी के कानों में बोली,
तुम वापस नहीं जाने वालीवाली पोती अब बड़ी हो ली |
प्यारी दादी माँ अपने घर को बाद में लेना निहार,
अंदर चलो मामा नाना तुम्हारा कर रहे हैं इंतज़ार |
दशकों बाद जब बड़े भाई ने सर पे प्यार से हाथ फेरा,
सुरीली रो पड़ी, भावुक भावनाओं ने उसको घेरा |
प्यार से बड़े भाई ने कहा सर पर हाथ फेर कर,
गर्वित होता होता हूँ, तुम्हारे सुख-सम्पन्नता देखकर |
निशब्द सुरीली मुस्काती रही बड़े भैया को देखकर,
बेटा सूर्या सब सुनता रहा खड़ा रहा बस बुत बनकर |
बहना ! वक़्त के साथ इंसान बहुत बदल रहा है,
इंसानियत लुप्त हो गई है, छल ही छल रह गया है |
बहना ! गांव में ज़मीनें जो तेरे नाम यूँ ही पड़ी हैं,
कुछ गलत लोगों की नज़रें उन ज़मीनों पर गड़ी है |
बहना ! गांव में कुछ औरतें हैं बहुत ही लाचार,
अपनी ज़मीनें देकर उनका जीवन दो संवार |
सुरीली बोली-भैया ! आप हमेशा ही सही कहते हैं,
हमेशा ही गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं |
आप जैसा कह रहे हैं मैं बिल्कुल वैसा ही करुँगी,
नेक कार्य में देरी कैसी,अभी के अभी गांव चलूंगी |
दादी के गांव जाने की बात सुन दिव्या अड़ गई,
माँ-पापा ने मना किया तो खुल कर लड़ गई |
अरसों बाद सुरीली भाई और दिव्या के संग माइके जा रही है,
और पूरे रास्ते सुरीली दादी मंद-मंद मुस्कुरा रही है।
तीषु सिंह 'तृष्णा'