मुद्दतों बाद भैया और दिव्या संग मुस्कुरा रही थी,
अरसों बाद आज सुरीली आज मायके जा रही थी |
सुरीली की सवारी गांव के बहुत पास आ गई थी,
पर आज सुरीली गांव पहचान ना पा रही थी |
जंगलों और पर्वतों तक की शक्लें बदल चुकी थी,
इतने बरसों में चीज़ें इतनी ज्यादा बदल चुकी थीं |
जब गांव के मिट्टी की खुशबू सांसों में समाई,
तब सुरीली वो ही पुराने अहसास महसूस कर पाई |
घर पर पहुँच सुरीली के भैया ने विभा को आवाज़ लगाई,
प्यारी-सी महिला फीकी गुलाबी लिबास में बाहर आई |
चेहरे पर मुस्कान थी और सर पर था पल्लू किया,
बुआ को चरण स्पर्श और दिव्या को आशीष दिया |
घूँघट के पीछे होकर भी चेहरे में खास बात थी,
विभा में अलग ही तेज था और अलग ही बात थी |
शाम की चायपर चाय संग पकौड़ियों ले विभा आई,
पिताजी-बुआ ज़रूरी बात करनी है ये बात उसने बताई |
आप दोनों बेसहारों की मदद करना चाहते हैं,
उन्हें ज़मीन,मकान और अनाज देना चाहते है |
इन्हें सहारे से अधिक उद्देश्य और मकसद की ज़रूरत है,
इन्हें आश्रय से अधिक ठिकाने और मंज़िल की ज़रूरत है |
ये वो औरतें हैं जिनके परिवार को उनकी ज़रूरत नहीं,
ये वो लोग हैं जिनके पास जीवन का मकसद नहीं |
सुरीली से भैया बोले -
देख रही हो ना बहना ! मेरी बहू है कितनी सयानी-सी,
बेटा बुआ को बताओ परिकल्पना भी परियोजना भी |
तुम्हारी बुआ भी बिल्कुल तुम्हारी तरह हुआ करती थी,
गरीबों-ज़रूरतमंदों की खूब मदद किया करती थी |
ये सब सुन दिव्या से रहा ना गया और वो बोल पड़ी,
विभा मामी आपकी योजना में मैं भी हूँ साथ खड़ी |
सोचा ये सारे ज़रूरतमंद पुरानी हवेली रह जाऍं,
बुआ यहाँ रहकर अचार-पापड़ के नुस्खे बताएँ |
फिर शुरू होगा व्यापार,औरतों को मिलेगा रोज़गार,
बिकवाली की जिम्मेदारी मेरी, मैं सम्भालूंगी बाज़ार |
विभा मामी मैं व्यापार की खास पढ़ाई कर रही हूँ,
पर आप जैसी गुणवान उसकी भी मोहताज़ नहीं |
सुरीली चुपचाप थी और सबकी बातें सुन रही थी,
और एकदम से अचानक मन की बात बोल पड़ी |
मुझे सहारे से अधिक उद्देश्य और मकसद चाहिए,
और आश्रय से अधिक ठिकाना और मंज़िल चाहिए |
अभी के लिए ये ही मेरा मकसद है,ये ही मेरी मंज़िल है,
दिव्या दादी का हाथ थामती है और दादी मुस्कुराती है |
-तीषु सिंह