हरि अनंत हरि कथा अनंता। रंगनाथ रामायण में एक सर्वथा नई कथा मिलती है जिसके अनुसार शूर्पणखा को एक पुत्र था जिसका नाम जंबुमाली था। कथा के अनुसार जब रावण ने अपने बहनोई विद्युज्जिह्व का वध कर दिया, उस समय शूर्पणखा छः महीने की गर्भवती थी। रावण ने शूर्पणखा को अपनी इच्छानुसार पति का वरण करके जीवन व्यतीत करने के लिए आज्ञा दी। सूर्पणखा पंचवटी में चली आई और वहां पर ससमय उसने जम्बुमाली नामक पुत्र को जन्म दिया। जब जम्बु बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता के बारे में सूर्पणखा से प्रश्न किया। शूर्पणखा से यह जानकर कि उसके पिता का वध रावण ने कर दिया है, वह अत्यधिक क्रोधित हो गया और रावण के वध के निमित्त वह तप करने के लिए जंगल को चला गया।
उसने सोचा कि ब्रह्मा जी तो वर देंगे नहीं और शिवजी रावण के इष्टदेव हैं साथ ही विष्णु भगवान पता नहीं कब प्रसन्न हों। यह सोचकर कि ये सभी देवता सूर्य देव में निवास करते हैं, उसने स्वयं सूर्य देव की आराधना करने का निश्चय करके बन में घनघोर तप किया। चिरकाल तक तपस्या करने के उपरांत उसका शरीर बाँस के झुरमुट से ढक गया। तब सूर्य देवता ने आकाश मार्ग से एक दिव्य खड्ग भेजा।
संयोगवश ठीक उसी समय भगवान श्रीराम का बनवास हो चुका था और वे अपने लघु भ्राता लक्ष्मण और सीताजी के साथ में वन प्रवास के लिए पंचवटी आ चुके थे। अचानक एक दिन लक्ष्मण जंगल में लकड़ी काटने के लिए गए और ठीक उसी समय घनघोर शब्द करता हुआ वह खड्ग अचानक हवा में लहराने लगा। और वह खड्ग तपरत जम्बु के पास में जा करके ठहर गया। खड्ग से आवाज निकली कि हे जम्बु कुमार! आप धन्य हो। आप यह खड्ग स्वीकार करें, श्री सूर्य देव ने मुझे भेजा है। लेकिन गर्व के वशीभूत हो उस राक्षस कुमार ने उस खड्ग को यह कर करके वापस जाने के लिए कहा कि यदि साक्षात सूर्यदेव आकर के तुमको मुझे समर्पण करते तब मैं स्वीकार कर लेता किंतु उन्होने स्वयं न आकर हमारा अपमान किया है। इसलिए तुम उनके पास वापस जाओ।
ठीक उसी समय लक्ष्मण जी वहां पर पहुंचे और इस घटना से अनजान उन्होंने उस दुर्लभ और चमचमाते खड्ग को अनायास ही हाथ में पकड़ लिया। फिर उन्होंने उसकी परीक्षा लेते हुए अचानक ही बांस से बने झुरमुट पर प्रहार कर दिया। तत्काल ही एक मुनिकुमार दो टुकड़े होकर छटपटाता हुआ दिखाई दिया। अब तो लक्ष्मण जी एकदम से कातर स्वर में विलाप करने लगे। उन्होंने कहा कि मैं दशरथ का पुत्र और श्री राम का लघु भ्राता ऐसा जघन्य कृत्य कैसे कर बैठा? अब तो मुझे जीने का हक नहीं। और फिर वह आत्महत्या करने को तत्पर हो उठे। फिर कुछ सोच कर उन्होंने प्रभु श्री राम के पास चल कर अपना अपराध स्वीकार करने का निश्चय किया। वे राम के पास पहुंचे और सारा वृत्तांत प्रभु को सुनाया। प्रभु भी चिंतित होकर कुछ सोचने लगे। तभी अनायास ही कुछ मुनियों का एक समूह वहां पर उपस्थित हो गया। फिर क्या था मुनियों ने उपर्युक्त पूरी कथा वृतांत के साथ श्री राम को सुनाया।
उन्होंने श्रीराम को यह बताया कि वह ब्राह्मण या मुनि कुमार नहीं है अपितु राक्षस कुमार है। और अगर वह खड्ग खुद उसके हाथ में आ जाता है तो वह सारी मानवता का विनाश कर देता। तो दैववस जो हुआ वह अच्छा ही हुआ। और इस तरह से आपने मानवता की रक्षा की है। आप शोक त्याग दीजिए। हे राघव! आपके कुल के किसी भी व्यक्ति से भूल से भी किसी की अकारण हत्या नहीं हो सकती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शूर्पणखा के पुत्र का नाम जंबु माली था। यह कथा अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। यहां तक कि श्री रामचरित मानस, वाल्मीकि रामायण या किसी अन्य ग्रंथ में भी इसका उल्लेख नहीं है। सिर्फ यह कथा रंगनाथ रामायण के अरण्यकाण्ड में उपलब्ध है।