जय कश्यप-नन्दन,
ॐ जय अदिति नन्दन। त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन,
भक्त-हृदय-चन्दन॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
सकल – सुकर्म – प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥
॥ जय कश्यप-नन्दन ॥
॥ इति श्री सूर्य आरती