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मन के इस अथाह सागर में
होती प्रश्नो की होड़ा होड़ी,
कभी मन विचलि हो जाता
कभी क्षण भर की तृप्ति.....
आहत करते प्रश्न स्वयं को
अंतस की गहराई में,
भाव स्वयं के, शब्द स्वयं को......
जीवन की सच्चाई में,
रेगिस्तान की मृग तृष्णा सी
क्या खोज स्वयं की पुरी होगी
भौतिकता की सृष्टी से....
क्या जीवन की तृप्ति होगी ???
चलो कुछ संकल्प कर आज
उतरू ध्यान की गहराई में
स्वयं को पाने, स्वयं से मिलने
अंतस की तरूणाई में . . . .
जितना मैंने मैं को जाना
राख भस्म ही अंश हैं सारा
इसमे ही हैं मिल जाना,
अंतिम में यह सत्व सारा ॥🌻❇🌻❇