क्यों तुम्हारे प्रेम में शिव,
अश्रु मेरे बह रहे है...
क्यों इतना मन व्यथित है,
प्राण मोती झर रहे है...जानती हूं दूर नही तुम
जर्रे जर्रे में बसे हो,
रोम रोम व्याकुल है फिर भी
वेदना क्यों कस रहे हो...कैसी भौतिकता की परिधि
व्यूह ऐसा जो रचा है,
मुक्त कर दो अब मुझे,
यह देह बंधन कस रहा है....अब तुम्हारे प्रेम में शिव
श्वास मोती झर रहे है.....