जय नाथ रमापति विष्णु प्रभो, जलधाम कृपा जगदीश विभो
जय माधव मोहक कृष्ण हरे, करुणाकर राघव कष्टहरें ।
जय शाश्वत दक्ष अमोघ हरी, भव कष्ट भयादुख रोग अरी
महि मंडल भूषण व्योम पते, शिव संत सदा तुमको जपते
जगताखिल तत्व अधार अहो, तुम ही अवनी भवपालक हो
तुम से प्रभु व्योम रसा चरते, तरु पुष्प सदा मरु में फरते
वसुदेव शिरोमणि चारुतरं, दुख पाप विमोचन साधु नरं
प्रभु ध्यान धरूँ तव मैं चरणं, महिनाथ हमें लो निज शरणं
पृथुदेव शुभेक्षण भृत्य सखं, कर चक्र गदा मृदुहास मुखं
मद मोह तृषा विपदा हरणं, प्रभु मांगत हूँ तव श्री शरणं
शुचि भाव विनिर्मित शब्द प्रभो , मम् अंतस से यह भेंट विभो
निज श्री पद में अनुमोद करें, प्रभु लें गति में उपकार करें।