तन्हाइयों में गुम ख़ामोशियों की
बन के आवाज़ गुनगुनाऊँ ज़िंदगी की थाप पर नाचती साँसें लय टूटने से पहले जी जाऊँ दरबार में ठुमरियाँ हैं सर झुकाये सहमी.सी हवायें शायरी कैसे सुनायें बेहिस क़लम में भरुँ स्याही बेखौफ़ तोड़कर बंदिश लबों कीए गीत गाऊँ गुम फ़िजायें गूँजती बारुदी पायल गुल खिले चुपचाप बुलबुल हैं घायल मंदिरएमस्जिद की हद से निकलकर छिड़क इत्र सौहार्द केएनग्में सुनाऊँ हादसों के सदमे से सहमा शहर बेआवाज़ चल रही हैं ज़िंदगानी धुँध की चादर जो आँख़ों में पड़ी खींच दूँ नयी एक सुबह जगाऊँ बंद दरवाज़ेएसोये हुये हैंं लोग बहरे आम क़त्लेआमए हँसी पर हज़ार पहरे चीर सन्नाटों कोए रचा बाज़ीगरी कोई खुलवा खिडकियाँ आईना दिखाऊँ काश! आदमियत ही जात हो जाये दिलों से मानवता की बात हो जाये कूची कोई जादू भरी मुझको मिले स्वप्न सत्य करेएऐसी तस्वीर बनाऊँ .श्वेता सिन्हा