हर अपील इवेंट नहीं होती।
हर अपील के अंदर एक भावना निहित होती है। बस उस भावना को समझ कर आपको तय करना होता है कि आपको उस अपील को कैसे निभाना है। उस अपील का समर्थन कैसे करना है।
प्रधानमंत्री की अपील के अंदर भी एक भावना थी और वो ये कि हम सब साथ हैं। ये अपील वास्तव में वायरस और लॉक डाउन के चलते तनाव में जी रहे करोड़ों भारतीयों में एकता का भाव बनाए रखने के उद्देश्य से करी गई थी।
निस्संदेह, इस अपील के पीछे की भावना खूबसूरत थी।
यहां तक तो सब ठीक था।
अब एंट्री होती है उन बुद्धिजीवियों की जो हर घोषणा को एक इवेंट मानते हैं। उनके लिए दिए मतलब दीवाली है। उनके लिए दिए मतलब पटाखे आतिशबाज़ी है। उनके लिए दिए मतलब खुशियां और उल्लास है। उनके लिए दिए मतलब पर्व है, त्योहार है।
बस इतना तो काफी था उनके लिए। उन लोगों ने जमकर त्योहार मनाया। जमकर आतिशबाज़ी की। मशाल जुलूस भी निकाले। "Go Corona Go" के नारों का उद्घोष किया।
आप यकीन मनिये। अगर आप थोड़े भी संवेदनशील हैं तो पटाखों की इन आवाजों ने आपको भी निराश किया होगा। आपने भी सोचा होगा कि भाई ये किसलिए! और अगर आप मानसिक तौर पे बिल्कुल संवेदनहीन हो चुके हैं और हर मामले में इवेंट ही ढूंढ़ते रहते हैं तो आपको निश्चय ही आनंद आया होगा इस आतिशबाज़ी को देख के।
आप सोचिए ना कि आखिर क्यों पटाखे जलाए जाएं ये जानते हुए कि अभी भी हम बारूद के ढेर पर बैठे हैं। भारी जनसंख्या घनत्व वाले इस देश में अगर ये वायरस अपने पांव पसार लेता है तो तबाही कितनी घातक होगी इसका अंदाज लगाना भी मुश्किल है।
खैर, प्रधानमंत्री जी के एक खूबसूरत प्रयास की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लगवाने वाले भक्तों को प्रणाम।
#दूसरा_पहलु
#The_other_aspect_by_Hitesh_Kubba