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तू ही मेरी मित्र सखा और तू ही मेरा सहारा है

Santosh

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5 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
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भोर हुई और सांझ हुई कई कल्प जमाने बीत गए कवियों की लेखनी से निकले गायक ने गाये गीत नए दुल्हन धरती को बना दिया फिर धरती का श्रृंगार किया यह अपनी प्यारी धरती मां कह- कहकर जय- जयकार किया कविता की प्यारी पंक्ति, उस में व्याप्त जग सारा है तू ही मेरी मित्र सखा और तू ही मेरा सहारा युद्ध के मैदान का तू हाल बताने वाली है छूटे प्रेम की बातों की तू याद दिलाने वाली है भ्रष्टाचार और दुराचार से अवगत हमें कराती है लोगों के सम्मुख, रहना हमें सिखाती है निकल लेखनी से कवियों की दुश्मन को ललकारा है तू ही मेरी मित्र और तू ही मेरा सहारा है देख अचानक तुम्हें कभी मैं विस्मय हो जाता हूं पढ़ते-पढ़ते तुम्हें कभी मैं अश्रुपूर्ण हो जाता हूं देख गरीबों की पीड़ा तू चुप रह पाती हो फिर संग्रह करके उन पीड़ा को अवगत हमे कराती हो जन जन के "उर" में हो समाहित मेरी भी तो खास हो तुम मुझे दिखाती मेरी छवि को दर्पण सा एहसास हो तुम व्यथा सुनाने तब -तब आई जब जब तुम्हें पुकारा है तू ही मेरी मित्र सखा और तू ही मेरा सहारा है! 

tu hi meri mitra sakha aur tu hi mera sahara hai

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