तुम्हारी जुल्फों के साए से भी, न जाने क्यूँ डरसा लग रहा है!
कोई तो है आस पास अपने, या सिर्फ मुझको गुमाँ हुआ है!
किसी की आँखों में अश्क हैं तो,किसी के चहरे पे मुस्कुराहट,
अजीब रस्में मुहब्बतों की, अजब ही इस खेल का मज़ा है!
अगर चलें साथ मिलके इसपर,मिलेगी मंजिल ज़रूर हम को,
बड़ा ही आसान राहे हक़ का ये सीधा सच्चा सा रास्ता है!
किसी की उल्फत का मान रखना हथेलियों पे है जान जैसे,
ये ख़ौफो दहशत का नाच देखो ज़मीं पे बढ़ता ही जा रहा है!
नहीं जरूरत मुझे दवा की मगर है हाजत बहुत दुआ की,
तबीब मुझसे ये कह रहा है, मरज़ तो क़ातिल ये बढ़ रहा है!
मिरी मुहब्बत से एक तुम ही, बताओ अंजान किस लिए हो,
लकी के दिल में फक़त तुम्ही हो,ये बात दुनिया कोभी पता है!
सग़ीर 'लकी'