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दुआ कर चले।

5 दिसम्बर 2021

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तेरे ख्याल को अब ख्यालों से जुदा कर चले,
अश्क़-बार ए सौगात के बदले दुआ कर चले।

पलकों पर ही रोक  लिया  अश्कों  को हमने,
यास ए मिलन की हर आवाज गुमा कर चले।

बेवफाई के हरेक नश्तर कर लिए नाम अपने,
मेरे कातिल तुझे,वफादारी का खुदा कर चले।

जमाने की नुइमाइशों का झूठ  तुझे मुबारक,
इश्क़ के मारे  सर को, पाँव से कुर्बां कर चले।

करे जा रहा आतिशी दरिया ख़ाक मेरी रूह,
उसी खाक  से तेरी  गलियाँ,  सजा कर चले।

ये ग़ज़ल तो फकत जीने का बहाना है साहिबा,
इम्तिहान ए जिंदगी के पर्चे बेफिक्र उड़ा कर चले।

जिंदगी थी गुजारनी,सीली सीली पीते आये दर्द 
साँसों में  बसाने का यूँ  हर्जाना चुका कर चले।

-साहिबा
gupta ji

gupta ji

नायाब आपकी लेखनी ...✍️...👌👌💐💐🏆🏆

5 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
कमी ए ज़ीस्त
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कुछ अनकही बातें, कुछ रूठी राहें,कुछ छूटे साथ,कुछ टूटे ख़्वाब। दरिया ए ज़िन्दगी की मौजों का अहसास समेटे हुए है ये किताब।

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