जिन की आखों में सपने हैं,होठों पर अंगारें हैं ,
जिन के जीवन-मृग पूँजी की क्रीडाओं ने मारे हैं,
जिन के दिन और रात रखें हैं गिरवीं साहूकारों पर,
जिन का लाल रक्त फैला है संसद की दीवारों पर,
मैं उन की चुप्पी को अब हुँकार बनाने वाला हूँ .
मैं उन की हर सिसकी को ललकार बनाने वाला हूँ ...