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(ये वेबपेज आचार्य प्रशांत की रचनाओं के कुछ अंश को प्रस्तुत करता है। इसमें दिया गया हर एक लेख उनके अपने हिंदी ब्लॉग hindi.prashantadvait.com से लिया गया है।)

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<br><p><em>(ये वेबपेज आचार्य प्रशांत की रचनाओं के कुछ अंश को प्रस्तुत करता है। इसमें दिया गया हर एक लेख उनके अपने हिंदी ब्लॉग <strong>hindi.prashantadvait.com </strong>से लिया गया है।)</em></p>

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एक ही तथ्य है और एक ही सत्य; दूसरे की कल्पना ही दुःख है

11 जून 2016
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प्रश्न: पिछले कुछ दिनों से अचानक विचारों की उथल-पुथल होने लगी है। मन में अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष सब भरे होते हैं। कृपया आप ही कुछ उपाय बताएं।वक्ता: पहली बात तो यह कि आपको साफ़-साफ़ पता हो कि इन विचारों को कोई हक़ नहीं है होने का, और इनसे विपरीत विचारों को भी वास्तव में कोई हक नहीं है होने क

सारी बेचैनी किसलिए?

10 जून 2016
6
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“गावनी तुधनो चितु गुपतु लिखिजाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे”रहससि साहिब (नितनेम)वक्ता: नानक कह रहे हैं कि जो कौन्शिअस  (सचेत) मन होता है, – विचारशील मन – वो दृश्यों में और ध्वनियों में चलता है। तो उसको उनहोंने इंगित किया है ‘चित्र’ से। और जो छुपा हुआ मन है – सब्कौन्शिअस (अवचेतन) मन, जहाँ वृत्तियाँ निवास

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