गीतिका, समांत- आन पदांत- देखे है, मात्रा भार- २६“गीतिका”उड़ता ही रहा ऊपर सदा अरमान देखे हैं बहता रहा पानी झुका आसमान देखे हैं मिले पाँव कीचड़ तो बचा करके निकल जाते उड़ छींटे भी रुक जाते मजहब मान देखे हैं॥घिरती रही आ मैल जमी फूल की क्यारी छवियाँ बिना दरपन बहुत छविमान देखे हैं