"गीतिका"दरवाजे पर ओस गिरी थीखलिहानों में कोश गिरी थीदिल्ली की सड़कों पर रेलाआंदोलन की धौस गिरी थी।।बहुत मनाया सबने मन कोउठा पटक में रोष गिरी थी।।कसक मसक कर रात गुजरतीदिन निकला पर जोश गिरी थी।।गरम रजाई और दुशालाब्रेड बटर पर सोस गिरी थी।।धन सबका बिल अन्नदाता काबिच मंडी बा- होश गिरी थी।।दूल्हा बिन बारात
"गीतिका" देख रहे सब नित एक ख्वाबमैं माली और मेरा गुलाबहाथों में जहमत का प्यालामर्म सुकर्म पै चढ़ी शराब।।देखो कितने पेड़ धरा परजश्न जतन बिन हुए खराब।।नहीं नाचते मोर वनों मेंकौन बाँचता खुली किताब।।सेल फोन पर सुबह सुहानीशाम थिरकती लिए ख़िताब।।नई फसल जल राख हो रहीब्यर्थ बह रहे नदी के आब।।'गौतम' गमला रखो सज
"दोहा गीतिका"क्यों मानव से भी बड़ा, होता चला विकासकुछ सोएं मरुभूमि पर, कुछ का घर आकाशक्या गरीब खाता नहीं, पिचका उसका पेटकुछ क्यों होटल खेलते, बावन पता ताश।।बैंक व्याज देता नहीं, कर्ज है कमरतोड़मध्यमवर्गी खिन्न है, क्या खाएं घर घास।।वोट बहुत है कीमती, सस्ता क्यों इंसानक्यों कुर्सी वर माँगती, जनता से वि
विश्व हिंदी दिवस पर दिली बधाई स्वीकारें मित्रों.....जय माँ शारदा!"गीतिका"हिंदी की पहचान पूछते, बिंदी का अपमान पूछतेदशों दिशाओं में है चर्चित हिंदी का नुकशान पूछतेलूटा है लोगों ने भारत बोली भाषा हुई नदारतअंग्रेजों ने बहुत सताया मुगल तुग़ल घमसान पूछते।।भारतीय भाषा न्यारी है फिर भी अंग्रेजी प्यारी हैमन
सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।। गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते। पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।। गुरु-चरण को धोके, करो र
कोरोना है साहब, दो मीटर की दूरी बनाएं रखें और मास्क पहनना न भूलें।"गीतिका" सोचता हूँ क्या जमाना फिर नगर को जाएगाजिस जगह से भिनभिनाया उस डगर को जाएगाचल पड़े कितने मुसाफिर पाँव लेकर गांवों मेंक्या मिला मरहम घरों से जो शहर को जाएगा।।रोज रोटी की कवायत भूख पर पैबंदियाँजल बिना जीवन न होता फिर को जाएगा।।बं
"गीतिका" नदियों में वो धार कहाँ से लाऊँराधा जैसा प्यार कहाँ से लाऊँकैसे कैसे मिलती मन की मंजिलआँगन में परिवार कहाँ से लाऊँ।।सबका घर है मंदिर कहते सारेमंदिर में करतार कहाँ से लाऊँ।।छूना है आकाश सभी को पल मेंचेतक सी रफ्तार कहाँ से लाऊँ।।सपने सुंदर आँखों में आ जातेसचमुच का दीदार कहाँ से लाऊँ।।संकेतों क
"दोहा गीतिका"री बसंत क्यों आ गया लेकर रंग गुलालकैसे खेलूँ फाग रस, बुरा शहर का हालचिता जले बाजार में, धुआँ उड़ा आकाशगाँव घरों की क्या कहें, राजनगर पैमाल।।सड़क घेर बैठा हुआ, लपट मदारी एकमजा ले रही भीड़ है, फुला फुला कर गाल।।कहती है अधिकार से, लड़कर लूँगी राजगलत सही कुछ भी कहो, मैं हूँ मालामाल।। सत्याग्रह
"दोहा गीतिका"मुट्ठी भर चावल सखी, कर दे जाकर दानगंगा घाट प्रयाग में, कर ले पावन स्नानसुमन भाव पुष्पित करो, माँ गंगा के तीरसंगम की डुबकी मिले, मिलते संत सुजान।।पंडित पंडा हर घड़ी, रहते हैं तैयारहरिकीर्तन हर पल श्रवण, हरि चर्चा चित ध्यान।।कष्ट अनेकों भूलकर, पहुँचें भक्त अपारबैसाखी की क्या कहें, बुढ़ऊ जस
आधार- छंद द्विमनोरम, मापनी- 2122, 2122, 2122, 2122"गीतिका" अब पिघलनी चाहिए पाषाण पथ का अनुकरण हो।मातु सीता के चमन में कनक सा फिर क्यों हिरण हो।।जो हुए बदनाम उनकी नीति को भी देखिए तोजानते हैं यातना को फिर दनुज घर क्यों शरण हो।।पाँव फँसते जा रहे हों दलदले खलिहान में जबक्यों बनाए जा रहे घर जब किनारे प
गीतिका, समांत- आन, पदांत- बना लेंचलो तराशें पत्थर को, भगवान बना लेंउठा उठा कर ले आएं, इंसान बना लेंनित्य करें पूजा इनकी, दिल जान लगाकरतिनका तिनका जोड़ें और मकान बना लें।।जितना निकले राठ भाठ, सब करें इकट्ठाईंटों का सौदा कर कर, पहचान बना लें।।सिर फूटा किसका किसकी शामत आईरगड़ें पत्थर इससे बड़ी मचान बना ल
गीतिका, मात्रा भार-30, समांत- अल, पदांत- आसीकुछ चले गए कुछ गले मिले कुछ हुए मित्र मलमासी कुछ बुझे बुझे से दिखे सखा कुछ बसे शहर चल वासीकुछ चढ़े मिले जी घोड़े पर जिनकी लगाम है ढ़ीलीकुछ तपा रहे हैं गरम तवे कुछ चबा रहे फल बासी।।कुछ फुला फुला थक रहे श्वांस कुछ कमर पकड़ के ऐंठेकुछ घूम रहे हैं मथुरा में कुछ च
मंच को प्रस्तुत गीतिका, मापनी- 2222 2222 2222, समान्त- अन, पदांत- में...... ॐ जय माँ शारदा!"गीतिका"बरसोगे घनश्याम कभी तुम मेरे वन मेंदिल दे बैठी श्याम सखा अब तेरे घन मेंबोले कोयल रोज तड़फती है क्यूँ राधाकह दो मेरे कान्ह जतन करते हो मन में।।उमड़ घुमड़ कर रोज बरसता है जब सावनमुरली की धुन चहक बजाते तुम मध
प्रस्तुत गीतिका, मापनी-2212 122 2212 122, समांत- अना, स्वर, पदांत- कठिन लगा था..... ॐ जय माँ शारदा!"गीतिका"अंजान रास्तों पर चलना कठिन लगा थाथे सब नए मुसाफिर मिलना कठिन लगा थासबके निगाह में थी अपनों की सुध विचरतीघर से बिछड़ के जीवन कितना कठिन लगा था।।आसान कब था रहना परदेश का ठिकानारातें गुजारी गिन दि
"दोहा गीतिका"बहुत दिनों के बाद अब, हुई कलम से प्रीतिमाँ शारद अनुनय करूँ, भर दे गागर गीतस्वस्थ रहें सुर शब्द सब, स्वस्थ ताल त्यौहारमातु भावना हो मधुर, पनपे मन मह नीति।।कर्म फलित होता सदा, दे माते आशीषकर्म धर्म से लिप्त हो, निकले नव संगीत।।सुख-दुख दोनों हैं सगे, दोनों की गति एककष्ट न दे दुख अति गहन, स
, समांत- आम, पदांत- को, मापनी- 2122 2122 1222 12"गीतिका"डोलती है यह पवन हर घड़ी बस नाम को नींद आती है सखे दोपहर में आम कोतास के पत्ते कभी थे पुराने हाथ में आज नौसिखिए सभी पूजते श्री राम को।।राहतों के दौर में चाहतें बदनाम करलग गए सारे खिलाड़ी जुगाड़ी काम को।।किश्त दर किश्त ले आ रहें बन सारथीबैंक चिं
मापनी -1222 1222 1222 1222, समान्त- आर का स्वर, पदांत- हो जाना"गीतिका" अजी है आँधियों की ऋतु रुको बाहार हो जानाघुमाओ मत हवाओं को सुनो किरदार हो जानावहाँ देखों गिरे हैं ढ़ेर पर ले पर कई पंछीउठाओ तो तनिक उनको नजर खुद्दार हो जाना।।कवायत से बने है जो महल अब जा उन्हें देखोभिगाकर कौन रह पाया तनिक इकरार हो
महिला दिवस पर प्रस्तुत दोहा आधारित गीतिका"गीतिका"पाना है सम्मान तो, करो शक्ति का मानजननी है तो जीव है, बिन माँ के क्या गाननारी की महिमा अमिट, अमिट मातु आकारअपनापन की मुर्ति यह, माता बहुत महान।।संचय करती चाहना, बाटें प्रतिपल स्नेहधरती जैसी महकती, रजनीगंधा जान।।कण पराग सी कोमली, सुंदर शीतल छाँवखंजन जस
मापनी- 2222 2222 2222 222,"गीतिका"कोई तो चिंतन को मेरे आकर के उकसाता हैबहुत सवेरे मन को मेरे आकर के फुसलाता हैअलसाई बिस्तर की आँखें मजबूरी में ही खुलतीकुछ तो है आँगन में तेरे छूकर के बहलाता है।।कोयल सी बोली मौसम बिन गूँज रही आकर सुन लोफूलों औ कलियों की बगिया आकर के महकाता है।।मेरे दामन के काटों को च
समान्त- अना, पदांत- नहीं चाहता"गीतिका"छाप कर किताब को बाँधना नहीं चाहताजीत कर खुद आप से हारना नहीं चाहतारोक कर आँसू विकल पलकों के भीतरजानकर गुमनाम को पालना नहीं चाहता।।भाव को लिखता रहा द्वंद से लड़ता रहाछंद के विधिमान को बाँटना नहीं चाहता।।मुक्त हो जाना कहाँ मंजिलों को छोड़ पानालौटकर संताप को छाँटना न