सब प्राणियों को गुलाम बनाने वाले
अब घरों में कैद बैठे हैं
सबको आँख दिखाने वाले
न जाने क्यूँ सहमे से रहते है ।
बेख़ौफ़ घूम रहे हैं वो
जो कभी जंगलों में छिपे रहते थे,
और उनका शिकार करने वाले वह शिकारी
न जाने किसका शिकार बन बैठे हैं ।
पर्यावरण का मिज़ाज भी अब
कुछ बदला बदला लगता है
कुदरत का है ये कैसा करिश्मा
हर दिन सुनहरा लगता है।
बहता हुआ पवन का यह झोका
एक अलग सी ताज़गी जगा जाता है
नदियों में बहता हुआ साफ़ पानी
अब हम सब को नज़र आता है।
ख़ुशी में झूमता ये पर्यावरण
अब चैन की साँस ले रहा है
सदियों से इसे तड़पाने वाला
इंसान तड़पकर सह रहा है ।
बस इतना ही कहना चाहूँगा साहब
कुदरत का ये खेल बड़ा निराला है
जिसने भी उसे ग़ुलाम बनाना चाहा
वह सदा उसकी ताकत के सामने हारा है।