जाने कब
चुपचाप बुढ़ापा
दबे पांव आ बैठा
कब मेरी बाहें पकड़ी
बाहु पाश में मुझ को जकड़ा
आज जवानी जर्जर पिंजर
थर थर करता बाहु बली
आखों पर मोटा चश्मा
पूरी बत्तीसी है नकली
साथ छोड़ते सारे अपने
मुंह मोड़ता अपना जाया
अब किसको अपना समझूँ
या कौन हुआ है पराया
दो पैरों पर उड़ता था
अब तीन पर भी चलना मुस्किल है
जीवन था रेशम रेशम
जाने कब टाट का
पैबंद हो गया। .......