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इक वार तो मन करता है !

18 अक्टूबर 2015

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सुनने को
तेरी बातें ;
पल-पल 
ये दिल करता है ,
स्पर्श गरम सांसों का ;
करने को 
मचल रहा है,
कोशिश !
खुद को छलने की 
मन मुक्त! 
पुनःकरता है ।
लौट आये अगर 
वो पल-छिन
यादों से महकते 
बिस्तर !
रातों के गहरे 
सन्नाटे !
बे-सुरे मगर 
रह-रह कर 
जुगुनू से 
से तेरे 
खर्राटे!
लौटा दे मुझे फिर कोई,
टूटे टुकड़े चूड़ी के ,
फिर झट से समेंट ,
रख लूँ,
बिखरे टूटे गज़रे को 
क्यों ना आज 
संवारूं शैया,
सिमतन वाली चादर को ,
आँखों से खुरच के 
काजल!
नजरौटा  बना लूँ,
दर्पण को उठा लूँ ,
फिर केश संवारूं 
सुलझा दे इस उलझन को 
इक बार तो 
दिल करता है ,
इक वार 
तुम्हें  जीने को 
इस वार भी दिल करता है !!


20 अक्टूबर 2015

20 अक्टूबर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

बहुत -बहुत शुक्रिया शर्मा जी !

19 अक्टूबर 2015

19 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अतीत की निस्तब्ध चारुता की ओर ले जाती सुन्दर कविता...!

19 अक्टूबर 2015

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तू पथिक है !

24 सितम्बर 2015
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पथिक !हम सब पथिक हैं,हमारी अनवरत यात्रा,पड़ाव कम ,अतुलनीय !जीवन अनंत,निरंतर अग्रसर है ,कर्मपथ पर ,ना रुकता और ना थकता कभी,विदित है सबको,सभी की मंज़िले भी एक हैं ,किसी को मिल गई !गर्वित !!ह्रदय हर्षित निरंतर बढ़ रहा है,कठिन....उन्नत!समय की सीढीयाँ वो ,पथिक !पथिक तो वो भी हैं ,जो राह की ठंडी हवा में,थक

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शब्द फिर उड़ने लगे हैं

24 सितम्बर 2015
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शब्द जब जुड़ने लगे,नए पृष्ठ भी मुड़ने लगे ,पंख उग आये ,विचारों के अनेक,त्रासदी की पंगुता तोड़कर,फिर लेखनी ,मूंक अक्षर फिर छिटककर ,इक सुरीली बांसुरी में ,ढल रहे हैं!कल्पना के नीड से,बाहर निकलकर ,फिर प्रखर ,नूतन विचार . . पंखों पर होकर सवार ,उड़ चले है शब्द !ढूंढने जन-भावनाएं ,खोजने नव कल्पनाये ,,श्रेष्ठ

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मैं अभय हूँ ;मैं समय हूँ

25 सितम्बर 2015
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मैं तेरे साथ रहता हूँ ,निरंतर साथ चलता हूँ ,तुम्हारे पांव बनकर ,धूप की छांव बनकर ,छलकता हूँ ,तुम्हारी प्यास हूँ मैं ,निवाला हूँ ,भूख,भूख का एहसास हूँ मैं ,बिखरा हूँ उजालो में ,तेरी मुस्कान भी हूँ ,पांव के छालों में ,अँधेरे में वहां तक,साथ चलता हूँ ,तेरी हर सांस में मौजूद ,हमेशा एक लय में,ना मद्धम ह

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जब भी मोड़ आया

26 सितम्बर 2015
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जीवन में जब भी मोड़ आया,याद वो सब आ गयाजो बहुत पीछे छोड़ आया ,पीर की कतरन ,छलकते आंसुओं की नमी;कंपकपाते होंठ उनके ,और वो झुकती नज़र,क्यों भला मैं!इनसे रिश्ता तोड़ आया जिंदगी में जब कभी मोड़ आया ,मैं भी निष्ठुर हो गया हूँआदमी सा,साथ में बीते हुए दिन,और रातें मिल गई ,याद फिर आ गए ,वो मेरी करवट पेतेरा रूठ ज

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संवाद आपसे करना है !

27 सितम्बर 2015
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स्नेह भरा आमंत्रण है,अनुरोध आपसे करता हूँ आना होगा इस चर्चा में ,संवाद आपसे करना है,संवाद आपको करना है !भूले -बिसरों को याद करो ,लेकिन !अब उनकी बात करो ,जो जीवित हैं ;संघर्षशील,हैं राष्ट्र हेतु !चिंतन में हैं ,हैं दूर मगर निज जीवन से ,पीते अभाव का दावानल ,फिर भी तत्पर हैं ,नवसृजन हेतु !सम्पूर्ण -समर

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लो उग आये पंख!

28 सितम्बर 2015
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ना जाने कब उग आये पंख,ये मन कोतूहल बस यूँ ही,उड़ने को मचल उठा;तत्पर !नीले अम्बर की ओर ,उड़ चला सारा आकाश नापने को,खुद में विश्वास जांचने को ,दिन खेल-खेल में निकल रहे,हैं पंख बहुत ,बोझिल उड़ान ,ऊँचा होता ही रहा ;देख!वो आसमान ,लौट आये भ्रमित हो,धरती पर...बुनने फिर नई कल्पनाये ,धरती तल में रोपित करने ,भर

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ये कैसी उलझन है !

1 अक्टूबर 2015
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कई बार तो जी करता है सच कह दूँ ,भूलके सारी मर्यादाएं ,सब कुछ कह दूँ ,मैं अंदर से चटक रहा हूँ ,सुख चूका हूँ ,बेहिसाब पद गई दरारें !जीवन में ,छिटक रहे हैं एक-एक कर ;तिनक-तिनके बिखर रहे हैं ,सच औ झूठ के बंधन भी,शिथिल हो गए ;टूट रहे हैं !सच कहता हूँ ,उलझ गया हूँ ,,बेमतलब ;छुपे हुए हालात ,उभरकर आये हैं

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"मनसे ह्रदय के देवता''

3 अक्टूबर 2015
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मन से !हृदय के देवता ,साकार होने लग गए,शब्द ले प्रारूप नव ;संकल्प में ढलने लगे ,व्याप्त वातावरण में;क्षण,कण सहज तजि सूक्ष्मता!आकार लेने लग गए|लो फिर प्रबल ;संभावना !जागृति हुई अदृश्य से ,संघष का संवेग स्वर साधे हुए ,अति-शोध अर्जित कर सघन!संवेदना को जोड़ने,करने पुनः निर्माण ,तम को वेधता,क्षितिज के पार

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'बृहद परिचय तुम्हारा'

15 अक्टूबर 2015
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शांत सुदृढ़ अटल सुन्दर सहज,निश्छल प्रखर है व्यक्तित्व मुखरित,कोटि-कोटिक  नमन करते राष्ट्रजन ।निहित संकल्प अंगणितराष्ट्रहित चिंतन तुम्हारा! बृहद; परिचय तुम्हारा !                                                                                                                                            

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इक वार तो मन करता है !

18 अक्टूबर 2015
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सुनने कोतेरी बातें ;पल-पल ये दिल करता है ,स्पर्श गरम सांसों का ;करने को मचल रहा है,कोशिश !खुद को छलने की मन मुक्त! पुनःकरता है ।लौट आये अगर वो पल-छिनयादों से महकते बिस्तर !रातों के गहरे सन्नाटे !बे-सुरे मगर रह-रह कर जुगुनू से से तेरे खर्राटे!लौटा दे मुझे फिर कोई,टूटे टुकड़े चूड़ी के ,फिर झट से समेंट ,

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चंदा मामा आयेगा

18 अक्टूबर 2015
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चंदा मामा आएगा दूध बतासा लाएगा ;ना जाने कित खोया है चन्दा मामा सोया है ,तारों में बेचैनी है ,लम्बी रात अँधेरी है अम्मा के आंचल में दुबका हुंकारा देता है रुक-रुक धीरे से हकलाता है माँ का हाथ दबाता है,चंदा मामा आया क्या दूध बतासा लाया क्या ,सोने का अभिनय करती है;मुन्ने की आहट सुनती है कंधा तेज हिलाती

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फिर पांव पलट कर वहीँ आ गए

9 अप्रैल 2016
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जब पाँव पलट कर गाँव गए तो!यादों की पुरवाई  चली,आँगन,ड्योढ़ी,चौबारे तक,देहरी,चौखट और दहलीज़ छूकर मेरी परछाई को फिफर पड़ींहौले से फिर छूकर तन को,मन को;रूठी -रूठी चहक उठी !खोल के फिर यादों की गठरी;ठुमक-ठुमक कर;पूरे आंगन में बिखर गईं और महक उठीं!!माँ बाबा की यादों ने जब घेर लिया,खड़ा अकेला हूँ आँगन दौड़ लगात

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बुने थे कई रिश्ते

10 अप्रैल 2016
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बड़ी बारीकियों से; बुने थे कई रिश्ते,बहुत  ही संभल कर इक-इक गिरह बाँधी थी,शायद कही कुछ उलझा है,कुछ तो है जो टूट रहा है मन में;विचारों में,दिन में रातों में,कहे-अनकहे शब्दों में,शब्दों की कतरन में संबंधों की छुअन में हौले से भी चुभन में कुछ तो है जो टूट रहा है जो गिरह खुल गईं हैं उनके छोरों को ढूढना फ

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वो अँधेरे से उजाला माँग बैठा, बहुत भूखा था निबाला मांग बैठा|

27 जून 2016
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मेरी याद दिल से भुलाओगे  कैसे,गिराकर नज़र से उठाओगे कैसे|सुलगने ना दो ज़िन्दगी को ज्यादा,चिरागों से घर को बचाओगे  कैसे  

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