बैग पैक हो गए ,शाम की बस थी , घर जाने की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था , होता भी क्यों नही ये त्यौहार ही तो होते है जिसमे घर जाने के लिए शायद की गुंजाइश नहीं होती है इसीलिए तो एक त्योहार के जाते ही दूसरे त्योंहार के दिन गिनने लगते है।।
शाम को जब हॉस्टल से निकलने लगे तो कमरों का सूनापन रोक सा रहा था , हॉस्टल के गेट पर मानो लिखा हो अकेले रह जाने का दुःख।। दीवारों में हमारे लौट आने की आस। कितना दुःख पूर्ण होता होगा ना पीछे छूट जाने वाले लोगो का जीवन।
ख़ैर ये सारे सवालात मन में चल ही रहे थे की तभी खिड़की से बाहर नज़र पड़ी और एहसास हुआ की अब गांव करीब है सारे सवाल सारे द्वंद खुशियों में बदल गए , गांव कुछ बदला बदला सा था मगर वो अपनेपन का एहसास , वो पुराने स्नेह से भरे चेहरे मानो इंतजार में थी ,
घर पहुंचते ही सबकी चेहरे पर मुकुराहट और फिर कितनी कमज़ोर हो गई ,खाना नही खाती थी क्या ,ज्यादा मेहनत पड़ रही क्या ? कुछ दिनचर्या पूछते हुए तो कुछ कहा घूमी नई टॉप ली ऐसे हजारों सवालातो ने घेर लिया हमे , और तभी मम्मी की आवाज़ आई पहले उसे कुछ खाने पीने दो ,बाद में ये सब सवालात करना।।
वो मां थी प्रेम,परवाह से पूर्ण जिसकी दुनिया उसके बच्चो में ही सिमट जाती है ,रात को जब पापा घर आए तो मुस्कुराते हुए गले लगाए और फिर कब तक की छुट्टी है पूछते हुए ख़ुद ही उसका जवाब भी दे दिए एक दो हफ्ते रुक कर ही जाना ।।
घर पर ये एक हफ्ते कब गुजर गए पता ही नही चला,लौट जाने का वक्त आ गया था ,बैगों की संख्या इस बार ज्यादा थी मैगी से लेकर कुरकुरे तक सब रख दिया था मानो ये सब शहरों में मिलता ही ना हो ,निकलते वक्त सबकी आंखें नम थी ,और उम्मीद और यकीन की एक दिन ये सफ़र जरूर तब्दील होगा एक खूबसूरत मंजिल में ।
आखिर में बाबा ने अपने पास बुलाया और कहा की खूब पढ़ना ,खूब खाना पीना और अत्साह के साथ रहना ,कोई जरूरत हो तो निःसंकोच हमे बताना ,खूब मेहनत करना लेकिन परेशान न होना बहुत बड़ा नही मिलेगा तो छोटा मिलेगा ना बस हारना नही ।।
उनकी ये बातें घर से हॉस्टल का सफ़र एक दम छोटा कर दी और उनकी ये उम्मीद मेरे हौसले को और बड़ा कर मेरे बहानों को ,अवरोधों तथा नकारात्मक विचारों को शून्य कर दी ,और फिर हॉस्टल पहुंचते ही एक गहरी सांस ली और फिर से लग गए अपने सपनो को साकार करने के लिए एक दुगीनी उत्साह के साथ।।।