वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में एक बहुत ही बड़ा ब्लैक होल खोजा है. यह 12 अरब सूर्यों से भी ज्यादा बड़ा है और धीरे धीरे एक आकाशगंगा को निगल रहा है. यह खोज बीजिंग की शुई-बिंग वू यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल रिसचर्रों की टीम ने की है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह ब्लैक होल ब्रह्मांड की शुरुआत के दौरान बना होगा. आकार में यह 12 अरब सूर्यों से भी ज्यादा बड़ा है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि यह ब्लैक होल धीरे धीरे ब्रह्मांड में मौजूद ग्रहों, तारों, पिंडो को निगलता जा रहा है. इसका द्रव्यमान बहुत ही ज्यादा है, जिसके चलते ये करीब आने वाली हर चीज को निगल लेता है.
आम ब्लैक होल की ही तरह ये विशाल ब्लैक होल भी एक आकाशगंगा का केंद्र है. आस पास मौजूद गैस, धूल और तारों को निगलने की वजह से इसका आकार लगातार बढ़ता जा रहा है. ब्लैक होल में किसी तारे या पिंड के समाने से ठीक पहले एक तेज रोशनी निकलती है. यह रोशनी ब्लैक होल में घुसने की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न हुई अथाह गर्मी से पैदा होती है.
ब्लैक होल काले नहीं होते
इस तरह के विशाल ब्लैक होल तो काफी चमकते भी हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि ये विशाल ब्लैक होल हमारे सूर्य से 4,200 खरब गुना ज्यादा चमकीला है. वैज्ञानिक खुद भी इन आंकड़ों से हैरान है. उनका अनुमान है कि यह ब्लैक होल जरूर ब्रह्मांड की उत्पत्ति के दौरान बना होगा.
आंकड़ों के गुणा भाग से पता चला है कि यह ब्लैक होल धरती से 12.8 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर है. इसका मतलब है कि इस ब्लैक होल से निकलने वाला प्रकाश हम तक 12.8 अरब प्रकाश वर्ष की यात्रा करके पहुंच रहा है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हमारा ब्रह्मांड 90 करोड़ साल पुराना है. इसी आधार पर कहा जा रहा है कि ये ब्रह्मांड की उत्पत्ति के दौरान बना होगा.
किसी आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद इतने बड़े और अतिचमकीले ब्लैक होल को क्वेजार कहा जाता है. हाल ही में खोजा गया ये क्वेजार कई रहस्यों से पर्दा उठा सकता है. इसके जरिए पता चल सकता है कि बिग बैंग के तुरंत बाद परिस्थितियां कैसी थी, ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ और अरबों वर्षों के दौरान कैसे बदलाव हुए? रिसर्च के बारे में विस्तृत रिपोर्ट विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर में छपी है.
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
द्रव्यमान बनाता है इसे
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
तारा या छेद
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
-अमित