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वाल्मीकि संत नवल राम जी

22 अगस्त 2022

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संत नवल राम जी    

    माना कि राजस्थान वीरों और वीरांगनाओं की भूमि है, लेकिन केवल वीर भूमि कहना गलत होगा, क्योंकि यह भूमि अपने गर्भ में कुछ और हुनर संचित किए हुए हैं। यहां की एक विशेष पहचान यहां की आध्यात्मिकता भी है।
    राजस्थान के लोगों में आध्यात्मिकता कुछ इस कदर रची-बसी है कि चाहकर भी इस आध्यात्मिकता को इस भूमि से और यहां के लोगों के जीवन से अलग नहीं किया जा सकता है। आध्यात्मिकता की इस लौ को जलाए रखने में समय-समय पर इस भूमि ने अनेक विद्वान और संयमी संतों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक वाल्मीकि संत के बारे में आज चर्चा की जा रही है- 
    सन 1783 ईस्वी में नागौर जिले की मेड़ता तहसील के गांव हरसोलाव में एक हरिजन परिवार में संत नवल राम जी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम कुशाला राम जी था और माता का नाम सिंगारी था। वे अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के नवल रामजी में जब उनके पिता ने यह प्रवृत्ति देखी, तो वे उन्हें रामानंद संप्रदाय के मेघवंशी संत कृपाराम जी के पास ले गए। संत कृपाराम जी ने उन्हें आध्यात्मिक उपदेश दिया और अपना शिष्य बना लिया। आध्यात्मिक जीवन बिताते हुए नवलराम जी अनेक संत महात्माओं के संपर्क में आए। अाध्यात्मिक उपदेश देते और लेते हुए उनका ज्ञान निरंतर बढ़ता गया। धीरे-धीरे वे आध्यात्मिक साधना के साथ पदों की रचना भी करने लगे। इनकी रचनाओं में निर्गुण परमात्मा की महिमा का बखान किया गया है। उन्होंने आमजन में सीधी सरल भाषा में राम नाम की महिमा पर जोर दिया है और आध्यात्मिक दार्शनिक विचारों को अपनी सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। इनकी वाणियों और दोहों का संग्रह नवलेश्वर अनुभव वाणी प्रकाश में मिलता है, जो सरल राजस्थानी भाषा में प्रकाशित है। उन्होंने सत्य को अपने उपदेश का आधार माना है। उनका कहना है कि धन, दौलत, रूप और राज सत्ता तो एक दिन मिट्टी में मिल जानी है, लेकिन सत्य को कभी भी नुकसान नहीं पहुंच सकता। उनका एक दोहा दृष्टव्य है-
धन्न डिगे ,जोबन डिगे, राज तेज डिग जाए ।।
सत्य वचन ना  डिगे नवल, जुग परले हो जाए।।
    संत नवलराम जी के 3 पुत्र थे- लादूराम, हरिराम और दयालराम। इन तीनों में दयाल राम की प्रवृत्ति आध्यात्मिक थी, अतः दयाल राम जी नवलराम जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बने। करीब 1908 ई. के आसपास नवलराम जी ने परमधाम गमन किया। उनके बाद उनके प्रमुख शिष्य और आध्यात्मिक उत्तराधिकारी दयालराम जी ने इनकी आध्यात्मिक विचारधारा को आगे बढ़ाया। इस प्रकार यह परंपरा आगे बढ़ती रही और धीरे-धीरे नवल संप्रदाय के रूप में इसने एक ठोस स्वरूप ग्रहण कर लिया। आज इस संप्रदाय का काफी फैलाव है और इस संप्रदाय के मंदिर राजस्थान में जोधपुर, बीकानेर ,अजमेर, जयपुर इत्यादि कई शहरों में है। यहां तक कि पाकिस्तान के कराची शहर में भी नवल संप्रदाय का मंदिर है। इस प्रकार संत नवलराम जी के उपदेशों पर आधारित नवल संप्रदाय आज भी उनके अनुयायियों और आध्यात्मिक संतों द्वारा प्रगति के मार्ग पर ले जाया जा रहा है।
                                                               रोहित गुजराती
                                                                 

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