आज इस सुबह की ही तरह ये कस्बा भी निखिल के लिए नया था। पिताजी का तबादला पिछले ही हफ्ते बनारस से रेनुकूट के पास, तुर्रा में हुआ था।
अब मन में सवाल उठता है कि रेनुकूट से करीबी की जानकारी देने की जरूरत ही क्या थी?🤔
जरसल तुर्रा में बाँध था, इसलिए सरकारी अफसरों का जमावड़ा था। वहीं रेनुकूट में कई बड़े-बड़े निजी कारखाने थे। इसलिए विकास की दौड़ में रेनुकूट आगे निकल गया था।
अतः चाहे स्वास्थ्य हो ,शिक्षा हो या बाज़ार, तुर्रा काफ़ी हद तक रेनुकूट पर निर्भर हो गया था।
घर व्यवस्थित हो चुका था, इंग्लिश मीडियम वाले पब्लिक स्कूल में दाखिला भी मिल गया था। नई किताबें,नया यूनिफार्म-बस्ता सब तैयार थे, सिवाय निखिल के।😣
वो थम सा गया था।
खिड़की के बाहर वह इन बदले हुए नजारों को देख रहा था, शायद कोस रहा था! सूरज की किरणें उसके गेहूँए रंग को एक तिलस्मी सुनहरापन दे रही थी। पर कल तक जिसे धुप फूटी आँख नहीं पसंद थी वह आज सूर्य को आँखें दिखा रहा था! निखिल गुस्से में पलकें नहीं झपका रहा था पर उसके बहते हुए आँसू उसकी तकलीफ़ बयाँ कर रहे थे।😢
पिछले स्कूल को छोड़ते वक्त वादा तो उसने सबसे कर लिया था रोज़ बात करने का, हर हफ्ते मिलने का, गर्मी की छुट्टियाँ साथ बीताने का; लेकिन उन वादों का खोखलापन उसे अब महसूस हो रहा था! और अब इस खोखलेपन को भर रही थी-यादें, बीते कल की।
बीते कल को याद कर के सुकून तो जरूर मिलता है पर कल की खुशी से आज की तुलना, गम को कई गुना बढ़ा देती हैं।😥
अपने दुख के दरिया में निखिल डूबने ही वाला था की माँ की डाँट रूपी लहर ने, गोते खाती निखिल की नौका को एक झटके में भवसागर पार करा दिया। सच्चाई के किनारे पर पहुँच कर निखिल ने न चाहते हुए भी इस नई हकीकत के आगे हथियार डाल दिये और तैयार होने लगा।
नए स्कूल का पहला दिन था। उत्साह और उत्सुकता तो दूर, निखिल तो खामोश था! माँ से बेहतर बच्चे के मन का हाल कौन जान सकता है भला? पर अब अपने लाडले का दुख भी दूर करना था, इसलिए आज डिब्बे में निखिल का मनपसंद आलू के पराठे थे, पर उसके मन को कुछ भी पसंद ही कहाँ आ रहा था।😕
खैर नई जगह के तौर-तरीके भी नए थे, और अब उनसे रूबरू होने का समय आ गया था!
अब हिन्दुस्तान में इंग्लिश मीडियम स्कूलों का रुतबा ,उनकी फीस और नखरे, सामान्य तो कहीं से न थे! अंग्रेज तो चले गए पर अपने पीछे अपनी सोच छोड़ गए-हमसे बढ़कर कौन?😤
रेनुकूट में तीन नामचीन इंग्लिश मीडियम स्कूल थे-पब्लिक, कान्वेंट और सरकारी, तीनों ही सर्वश्रेष्ठ थे! अपने-अपने हिसाब से।😁 कोई किसी से कम नहीं था।
पर यहाँ प्रतिस्पर्धा अब खुद को बेहतर साबित करने से ज्यादा दूसरे को निकम्मा दिखाने की थी।😒 हालात तो यह थे कि हर टीचर यदा-कदा दूसरे विद्यालयों और उनके नकारा विद्यार्थियों से अपने 'होनहार' विद्यार्थियों को दूर रहने के उपदेश दिया करते थे। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे ही अभूतपूर्व बदलावों की दीशा में उठाए गए कदमों में से एक कदम यह भी था की हर स्कूल की बस अलग और बस-स्टाप भी अलग-अलग थे।🤷♂️
पब्लिक स्कूल की फीस इतनी थी की मध्यम वर्गीय परिवार को अपनी जायदाद बेचनी पड़ जाए!😟 इसलिए तुर्रा से आमतौर पर बच्चे कान्वेंट और सरकारी स्कूल में जाया करते थे।
पर सरकारी अफसरों के बच्चे आम कहाँ थे? इसलिए सभी बाबुओं के बच्चे पब्लिक स्कूल में थे।😎
और इनके लिए एक छोटे निजी वैन का बंदोबस्त भी किया गया था, जो निखिल के घर के बाहर आ गई थी।🚐
वैन में चढ़ते ही उसे एहसास हुआ कि “घनत्व” कहते किसे हैं?🤢 वैन वाले ने तो कहा था कि बस मुट्ठी भर ही बच्चे थे, पर यहाँ तो पैर रखने की जगह न थी!
एक तरफ़ जगह देख कर निखिल बैठ तो गया पर अपने वातावरण में एक नए जीव के आगमन पर हर ओर चहल-पहल थी!🧐 वैन एक झटके के साथ चल पड़ी, धीरे-धीरे इतनी भर गई कि बैठने की छोड़िए लटकने की भी जगह न बची। हर नज़र निखिल की ओर ही थी, हर फूस-फूसाहट मुख्यतः निखिल के ही बारे में थी। जिज्ञासा से ज्यादा सबको समस्या थी कि-“कितनों को ठूँसेंगे?”।😒
वैन फिर रुकी। एक बच्चा चढ़ा और किसी को बुलाने लगा-"अरे जल्दी करो!"
कुछ देर में एक साँवली सी लड़की दौड़ते हुए आई और चढ़ते ही बोली-“सॉरी! वो जल्दी-जल्दी में बैग की जगह झोला उठा लिया था"। सब हँस पड़े, सिवाय निखिल के।
वैन फिर चल दी। निखिल को उस लड़की में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, वह तो बस अपनी सीट में घुसा चला जा रहा था मानो गायब होना चाहता हो।😣
अब पहले से भरी हुई वैन में जगह खड़े रहने की नहीं थी। यहाँ लड़की को खड़े रहने में दिक्कत हो रही थी, तो उसने अपने लिए जगह बनाने की जद्दोजहद शुरू कर दी, एक तरफ से सभी उसके इशारे पर सरकते चले गए। पर निखिल ने तो आँखें ज़मीन में जमा रखी थी, तो ना तो उसने कोई इशारा देखा और ना ही अपनी जगह से हिला!😑
“ज़मीन काफी सुंदर है पर अब क्या छेद करने का इरादा है उसमें?”
एकाएक सब की हँसी से निखिल वापस वैन में आ गया था। उसने नज़र उठाई तो सामने एक लड़की खड़ी थी।🙄
“अगर आप अपनी तशरीफ़ तनिक सरका लेंगे तो हम भी आपके बगल में विराजमान हो सकेंगे!”
सभी की हँसी निखिल को असहज कर रही थी,😓 सरकते ही वह फिर किसी दुसरी दुनिया में गुम हो गया।
वैन में शोर था, पर निखिल शांत था! शायद अंदर का कोलाहल ज्यादा था। खैर अब स्कूल आ गया था, सभी अपनी-अपनी कक्षाओं की ओर निकल चुके थे। निखिल भी किसी न किसी से पूछते-पूछते पहुँच गया 10-‘अ’ में।
सभी बच्चे प्रार्थना के लिए गए हुए थे तो क्लास खाली थी। निखिल ने मन ही मन सोचा-“चलो कुछ तो अच्छा है इस दिन में!”
सबसे पीछे वाली सीट पर किसी का बस्ता न था, बस निखिल वहीं बैठ गया।
कुछ समय में प्रार्थना समाप्त हुई और कक्षा में जनसंख्या बढ़ने लगी। माहौल में एक बार फिर चहल-पहल थी, जिसका कारण फिर से निखिल ही था। उसने तुरंत किताबें खोली ली पर पढ़ने के लिए नहीं!😥
शिक्षिका के कक्षा में आते ही सभी गतिविधियों पर विराम लग गया। टीचर की नज़र नए बच्चे पर पड़ी।
“बैठ जाओ सब। यह सबसे पीछे कौन है?🤨....आप, इधर आइए।“
निखिल डर गया, उसका गला सुख गया।😖 सबसे बचने के लिए ही तो इतने पीछे अकेले बैठा था पर अब सब किए-कराए पर पानी फिर गया था! हाँलाकि निखिल की उम्र में बच्चों को पीछे बैठने का शौक होता है पर निखिल को उसकी माँ ने बताया था की क्लास में पीछे बैठने वाले पीछे ही रह जाते हैं, इसलिए पिछली सीट पर बैठना उसके लिए बड़ी बात थी।
इस उम्र में बच्चे अकसर माँ-बाप की बातों को अनसुना कर देते हैं, पर छोटे शहरों और कस्बों में यौवन बड़े शहरों के वनस्पत धीरे आता है!
निखिल डरे सहमे शिक्षक की मेज के पास पहुँचा।
“नाम क्या है?”🤨
निखिल हाजिर जवाब लड़का था, पर यहाँ तो वो हाजिर ही न था। निखिल के चुप रहने पर टीचर ने फिर से नाम पूछा। निखिल फिर मौन! मैडम जी ने कक्षा के बच्चों की सूची निकाली, जो आज ही उन्हें प्रधानाचार्य ने सुबह थमाई थी।
“निखिल! निखिल नाम है तुम्हारा?”
निखिल ने ज़ोर से सिर हाँ में हिलाया, जैसे जीवनदान मिल गया हो उसे।
“तो बोलो ना! तुमसे ही तो पूछ रहे हैं। खैर जाने दो“, और फिर बाकी बच्चों से बोली, “यह है निखिल राठौर। आज ही दाखिला हुआ है।.... ”
मैडम निखिल के बारे में कक्षा को बता रहीं थीं पर निखिल बस नजरें बचा रहा था। अचानक उसे एक जाना पहचाना चेहरा दिखा!
सुबह वाली लड़की सबसे आगे ही बैठी थी! जैसे ही निगाहें मिली उसने मुस्कराते हुए हल्का सा हाथ हिलाया।
यहाँ निखिल शर्म से पिघलने लगा, उसने मन ही मन सोचा-‘इसे बुरा भी कुछ हो सकता है क्या?’😵, पर तभी उसका ध्यान मैडम जी पर गया जो शायद उसे ही कुछ कह रही थी, पर उसने सुना नहीं था, बस सिर मंजूरी में हिलाया और बढ़ गया अपनी सीट की तरफ।
दिन भर निखिल ने किसी से बात नहीं की थी क्योंकि उसे शर्म आ रही थी! कैसी विडंबना है ना बचपन में पलक झपकते ही अनजानों से दोस्ती हो जाती थी।😊 सब कितना सरल था- एक ‘कट्टी’ में रिश्ता खत्म और ‘मिलीश’ में दोस्ती का सब्सक्रिप्शन रीन्यु!😄 शायद बचपन में शर्म और लिहाज का पाठ किसी ने पढ़ाया नहीं था। पर बड़े होते हुए दुनियादारी समझते-समझते रिश्तों की यह सहजता कहीं खो सी जाती है। बहरहाल निखिल को उसकी हिचक घुलने-मिलने नहीं दे रही और बाकी किसी को कोई खास जरूरत थी नहीं।🤷♂️
स्कूल खत्म हो चुका था। निखिल के लिए आज का दिन किसी सजा से कम न था।😥 वह अपनी किस्मत को कोसते हुए वैन की प्रतीक्षा कर रहा था। इस वक्त भीड़ कम थी, क्योंकि हर क्लास की छुट्टी का समय अलग-अलग था। आठवीं तक के बच्चे घंटे भर पहले ही निकल चुके थे और ग्यारहवीं-बारहवीं की छुट्टी में अभी वक्त था।
वैन के आते ही निखिल दौड़ कर ऐसे चढ़ा जैसे भागना चाहता हो वहाँ से। और एक कोना पकड़ कर बैठ गया, अब उसे यहाँ एक पल रुकना भी गंवारा न था! वैन जैसे ही चली, उसने चैन की साँस ली, पर उसका सुकून दीर्घायु न था!
“थोड़ा घिसको!”
“बैठ के जाना है सो कर नहीं”, निखिल ने फटाक से उत्तर दिया वो भी बिना देखे! नजरें उठाई तो वही लड़की।
“गूँगा बोला साएबा!”🤪, तंज कसते हुए वह लड़की बोली।
निखिल की आँखों की कशमकश शायद उसने पढ़ ली थी।
अब वह उसे ताना नहीं दे रही थी- “क्या करूँ यार खाते-पीते घर की लड़की हूँ, इतने में अट नहीं पाऊँगी। अब जल्दी हटो वरना तुम्हारे ऊपर गिरी तो तुम्हारा पापड़ बन जाएगा!”😏
निखिल ने इस बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा और सोचा-‘मोटी तो कहीं से नहीं है पर हटा नहीं तो इसकी और बकबक सुननी पड़ेगी’, वह हट गया। लड़की अब बैठ चुकी थी।
“वैसे मेरा नाम आईशा है, तुम्हारी ही क्लास में हूँ!”
“मालूम है।🙄”, इस जवाब की बेरुखी तो बहरे को भी सुनाई दे जाती!
“तुम इतने उखड़े हुए से क्यूँ हो? सुबह से रोती सी शक्ल लिए घूम रहे हो, ऐसा भी क्या हो गया है तुम्हारे साथ?”🤔
निखिल को ऐसे प्रश्न की उम्मीद न थी, पर अंदर की हलचल अब उसके काबू के बाहर थी! बस सारी रामायण सुना डाली- पुराने दोस्तों से बिछड़ने से ले के नए शहर में खोने तक! उसने सब बोल डाला।😤 आईशा भी पूरे ध्यान से सब सुन रही थी।
निखिल के चुप होते ही उसने कहा, “तुम्हें किसी ने कहा है क्या कि दोस्त नए नहीं बन सकते? पुरानी दोस्ती अच्छी होती है। और जरूरी भी! पर हर चीज़ की एक एक्सपायरी डेट(expiry date) के साथ आती है। और फिर पुराना जाएगा नहीं तो नए के लिए जगह कैसे बनेगी? मैं यह नहीं कह रही कि अपने पिछले स्कूल के दोस्तों से दोस्ती ना रखो, रखो। पर यहाँ कुछ नए दोस्त बना भी लो। यारी नई हो, या पुरानी, फर्क नहीं पड़ता, जबतक सच्ची हो!"😊
आईशा का घर आ गया था, उसने बस्ता उठाया और बोली- खुद को और दूसरों को थोड़ा समय दो।"
निखिल की शक्ल पर अब राहत सी थी। वह मुस्कुरा रहा था; काफ़ी समय बाद!
आईशा वैन से उतरी, निखिल की ओर देखा और बोली- “देखा इतना भी बुरी नहीं है, ना मैं और ना ही हमारा स्कूल! बाय।“😉
इधर निखिल ने भी मुस्कराते हुए हाथ हिलाया। वह अब पहले से बेहतर था, उसने मन ही मन सोचा- शायद इतनी भी बुरी नहीं है यह जगह!😏
कितना कुछ बदल गया था इस दस मिनट के सफ़र में। सुबह से गुमसुम सा लड़का अब मुस्कुरा रहा था!
जिससे क्लास में नज़रें चुरा रहा था अब उसे ही बाय कर रहा था! और सबसे बड़ी बात, अब यह जगह उतनी भी बुरी नहीं रह गई थी क्योंकि अब इस में वो अकेला नहीं था!
अगले दिन फिर सबकुछ वैसा ही था। बस निखिल का अंदाज़ कुछ बदला हुआ सा था। उसे जल्दी थी स्कूल जाने की!🤨
मम्मी और पापा खुश थे कि निखिल को उसका स्कूल पसंद आ रहा था। ☺
वैन दरवाज़े पर आई। निखिल चढ़ गया। जनसंख्या में वृद्धि होने लगी। पर अब निखिल असहज नहीं, पर बेचैन था! बार-बार बाहर देख रहा था।
वैन फिर से रुकी। यह जगह जानी-पहचानी सी थी निखिल के लिए! वैन के रूकते ही आईशा आ गई और बोली- "देखा आज नहीं हुआ ना लेट!"😁
निखिल ने फटाक से उतर दिया- "बड़ी मेहरबानी आपकी!"😏
सबकी हँस पड़े। आईशा शर्माते हुए चढ़ी, उसके पिछे उसका भाई भी। जगह आज भी नहीं थी पर आज निखिल ने सीट पर रखा अपना बस्ता बिना किसी इशारे के उठा लिया। और फिर ज़मीन की तरफ़ देखने लगा। आईशा थोड़ी हैरान थी पर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।😏
वह बैठी और निखिल के कान में धीरे से बोली- "आज नाश्ते में ऐसा क्या खा लिया जो जुबां कैंची हो गई है?"😏
"हमारे बनारस की भांग वाली ठंडाई पूरे यु. पी. में वर्ल्ड फेमस है, बोलो तो आगे से तुम्हारे लिए भी बनवा लाऐंगे।"😎
दोनों जोर से हँस पड़ते हैं।🤣