ये रिश्ते क्या हैं’ पुस्तक जे. कृष्णमूर्ति द्वारा विभिन्न स्थानों पर दी गयीं वार्ताओं का एवं उनके द्वारा रचित लेखों का प्रासंगिक संकलन है। हमारा हर उस शख्स से, हर उस शै से क्या रिश्ता है जो हमारे जीवन में है? क्या हमारे रिश्तों में ये द्वंद्व कभी ख़त्म न होंगे? तमाम तरह की स्मृतियों व अपेक्षाओं पर आधारित ये संबंध कितने आधे-अधूरे से हैं, और वर्तमान की जीवंतता से प्रायः अपरिचित, छवियों व पूर्वाग्रहों में कैद इन्हीं रिश्तों में हम सुकून तलाशते हैं। आखिर सही रिश्ता, सम्यक् संबंध है क्या? कृष्णमूर्ति कहते हैं, ‘जब आप खुद को ही नहीं जानते, तो प्रेम व संबंध को कैसे जान पाएंगें? ‘हम रूढ़ियों के दास हैं। भले ही हम खुद को आधुनिक समझ बैठें, मान लें कि बहुत स्वतंत्र हो गये हैं, परंतु गहरे में देखें तो हैं हम रूढ़िवादी ही। इसमें कोई संशय नहीं है क्योंकि छवि-रचना के खेल को आपने स्वीकार किया है और परस्पर संबंधों को इन्हीं के आधार पर स्थापित करते हैं। यह बात उतनी ही पुरातन है जितनी कि ये पहाड़ियां। यह हमारी एक रीति बन गई है। हम इसे अपनाते हैं, इसी में जीते हैं, और इसी से एक-दूसरे को यातनाएं देते हैं। तो क्या इस रीति को रोका जा सकता है’?
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