" अनेकता में एकता व विभिन्न रूपो में एकता की
अभिव्यक्ति ही भारतीय संस्कृति की सोच रही है "
एकात्म मानववाद के प्रणेता युग पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जन्मजयंती पर शत शत नमन 🙏
आइये जानते हैं उस युग पुरुष के बारे में जिसने भारतीय राजनीति से ज्यादा भारतीयता और एकात्म मानवता पर ज़ोर दिया और अपने निजी जीवन को भी देश की सेवा के नाम किया |
25 सितम्बर 1916 ➡️ 11 फरवरी 1968
निजी जीवनी :-
देश में एकात्म मानववाद की विचारधारा से प्रसिद्ध पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानकिया गांव में उनके नाना के घर पर हुआ था | उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो उत्तर प्रदेश के नगला चंद्रभान फरह, मथुरा के निवासी थे| उनकी माता का नाम रामप्यारी था |
इनके पिता रेलवे में नौकरी करते थे, जिस कारण उनका अक्सर बाहर आना जाना लगा रहता था।ऐसे में इनके पिता ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय और उनके छोटे भाई शिवदयाल को इनकी ननिहाल भेज दिया था। जहां रहकर ही इनकी माता रामदुलारी ने बच्चों की परवरिश की। लेकिन उस समय पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आयु मात्र 3 वर्ष की रही होगी, जब इनके पिता का देहांत हो गया। इतना ही नहीं पिता की मृत्यु के बाद इनकी माता इस सदमे को बर्दाश्त ना कर सकी।
ऐसे में कुछ समय बाद क्षय रोग से पीड़ित होने के कारण इनकी मां भी चल बसी। जिसके कारण पंडित दीनदयाल जी का बचपन काफी कष्टों से भरा रहा। पंडित दीनदयाल जी पढ़ाई में प्रारंभ से ही मेधावी रहे। जिस वजह से इन्होंने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
जिसके लिए इन्हें गोल्ड मेडल से भी नवाजा गया। और स्नातक के बाद स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त की।
अंग्रेजी शासन में इन्होंने प्रशासनिक सेवा से जुड़ी परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास होने के बावजूद इन्होंने अंग्रेजी शासन के लिए नौकरी नहीं की।
इनकी एक बहन रामादेवी थी। जिनकी मृत्यु ने इन्हें पूरी तरीके से तोड़ कर रख दिया था।
राजनीतिक सफर
1937 में जब वे कानपुर से बी.ए. कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए| उन्हें संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य भी कानपुर में ही मिला| संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आए | 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना हुई |
1952 में इसका भारतीय जनसंघ का प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ| दीनदयाल उपाध्याय इस दल के महामंत्री बने। इस प्रथम अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से सात प्रस्ताव उन्होंने प्रस्तुत किए थे| डॉ. मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर एकबार कहा था-
यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं |
15 वर्ष जनसंघ के महासचिव रहे। वर्ष 1967 में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया बाद में यही जनसंघ 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी |
साहित्यिक सफर
1940 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ से 'राष्ट्रधर्म' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर पूरे देश में राष्ट्र के कर्तव्य, राष्ट्र के लक्ष्यों के प्रति लोगों को जागरूक किया।
उन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश जैसी पत्रिकाओं की भी शुरुआत की जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की न सिर्फ परिचारक बल्कि ध्वजवाहक भी हैं, तो वही राष्ट्र चिंतन नामक पुस्तक उनके भाषणों का संग्रह है | दो योजनाएं,राजनीतिक डायरी तथा एकात्म मानववाद जिसे अंग्रेजी में इंटीग्रल ह्यूमैनिज्म कहा गया उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें है |
उनका कहना था कि सिर्फ दंड के सहारे राज्य को नहीं चलाया जा सकता। राज्य को चलाने के लिए धर्म की भी आवश्यकता पड़ती है और धर्म के साथ ही उन्होंने अर्थ पर भी जोर दिया था क्योंकि बगैर अर्थ के धर्म टिक नहीं पाता है |
उन्होंने भारत की आर्थिक नीति पर भी किताबें लिखी है जो इस प्रकार हैं-
भारतीय अर्थ नीति: विकास की एक दिशा
भारतीय अर्थ नीति का अवमूल्यन
सादा जीवन :-
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी सादा जीवन व्यतीत करते थे और अपने कार्यकर्ताओं को भी यही कहा करते थे कि दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन ही उनकी संपूर्ण आवश्यकता है |
मृत्यु :-
साल 1968 में कालीकट अधिवेशन के दौरान 11 फ़रवरी की रात्रि को रहस्यमय तरीके से मुगलसराय स्टेशन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या कर दी गई | उनका मृत शरीर मुगलसराय (वर्तमान में दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन) के पास रेलवे की पटरी पर मिला | हालांकि आज तक उनकी मौत के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। और साथ ही कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात उनके हाथ में मिले पांच के नोट के बारे में किसी को कोई सूचना नहीं है। जैसे ही डॉक्टर ने घोषणा की की दीन दयाल जी नही रहे देश मे शोक की लहर दौड़ गयी |
भारतीय राजनीति में इस दिन को याद करके आज भी लोग निशब्द हो जाया करते हैं |
दीन दयाल जी एक पत्रकार, भारतीय राजनीतिज्ञ, साहित्यकार, स्वयंसेवक, समाज सुधारक के रूप में हमेशा आदर्श माने जाएँगे |
आइये देखते हैं उनके कुछ विचार
●हमारी राष्ट्रयिता का आधार केवल भारत नहीं अपितु भारत माता है, क्यूंकि यदि माता शब्द हटा दिया जाए, तो केवल एक जमीन का टुकड़ा मात्र शेष रह जाएगा |
●नैतिकता के सिद्धांतो की खोज की जाती है, ना केवल एक व्यक्ति द्वारा इसका निर्माण हो सकता है।
●जब मनुष्य अपने स्वभाव को धर्म के सिद्धांतो के अनुसार बदलता है, तब जाकर हमें संस्कृति और सभ्यता की प्राप्ति होती है।
●पिछले 1000 वर्षों में जबरदस्ती या अपनी इच्छा से, चाहे जो कुछ भी हमने ग्रहण किया है – अब उसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता|
●यहाँ भारत में, व्यक्ति के एकीकृत प्रगति को हासिल के विचार से, हम स्वयं से पहले शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की चौगुनी आवश्यकताओं की पूर्ति का आदर्श रखते हैं
●धर्म एक बहुत व्यापक अवधारणा है जो समाज को बनाए रखने के जीवन के सभी पहलुओं से संबंधित है
●समाज के हर व्यक्ति को ढंग शिक्षित करना होगा, तभी वह समाज के प्रति दायित्वों को पूरा करने में करने सक्षम होगा
●भगवान ने हर आदमी को हाथ दिये हैं, लेकिन हाथों की खुद से उत्पादन करने की एक सीमित क्षमता है. उनकी सहायता के लिए मशीनों के रूप में पूंजी की जरूरत है
चरैवेति चरैवेति
🙏