सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम। 🙏
आइये जीते हैं एक दिन दिनकर जी के साथ
हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था|
रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं|
दिनकर जी के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा|
संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मिडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया। यहीं से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के मनो मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने मोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे।
1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया।
1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष.
1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक.
1952 से 1964 राज्यसभा का सदस्य.
1965 से 1971 तक भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार.
1964-1965 कुलपति भागलपुर विश्वविद्यालय.
हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ प्रमुख रचनाएँ
रश्मिरथी.
परशुराम की प्रतीक्षा.
संस्कृति के चार अध्याय.
उर्वशी.
कुरुक्षेत्र.
रेणुका.
हाहाकार.
हुंकार.
चक्रव्यूह.
आत्मजयी.
वाजश्रवा के बहाने.
उपलब्धियां
‘राष्ट्रकवि’.
राष्ट्रवादी, प्रगतिशील, विद्रोही, आधुनिक युग के श्रेष्ठ ‘वीर रस’ के कवि.
पद्म विभूषण 1959.
‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार 1959.
"रे,रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,जाने दे उनको स्वर्ग धीर..!
पर,फिर हमें गाण्डीव-गदा,लौटा दे अर्जुन-भीम वीर..!!"