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ज़िंदगी

4 जुलाई 2017

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किसी की ज़िंदगी में आना जितना आसान है

किसी की ज़िंदगी बनना उतना ही मुश्किल

और मुश्किलों से भागना जितना आसान है

उनसे लड़ना उतना ही मुश्किल

मरज़ी से कौन परेशानियाँ उठाता है

ये तो मेहरबानी है परेशानियों की ......

हर बार हमें ही चुन लेती हैं

उलझे हुए परिंदे को

कभी न सुलझने वाली पहेली दे देती हैं....

वक्त को रोक के इंतज़ार तो कर सकते हो किसी का

मगर.....

जिसके इंतज़ार में हो उसे वक्त के साथ चलने से रोक नहीं सकते

बाबू मोशाए.....तुम्हारी कहानी ऐसी कहानी है...

जो तुम पढ़ तो सकते हो

मगर किसी को पढ़ा नहीं सकते...

किरद- ए - ज़िंदगी अपना समझा नहीं सकते....

मौत से पहले ये दुनिया छोड़कर जा नहीं सकते.......

मौत से पहले ये दुनिया छोड़कर जा नहीं सकते.......

प्रतीक्षा गौतम


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