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पॉकेट मनी

25 सितम्बर 2021

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पॉकेट मनी

निखिल आठवीं में पढ़ने वाला एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था। 
उसके पापा एक छोटे से दफ्तर में काम करते थे और उसकी मम्मी एक घेरलू महिला थी जो अक्सर बीमार ही रहती थी।
निखिल को रोज स्कूल के लिए पांच रुपए पॉकेट मनी के तौर पर मिलते थे क्योंकि कभी कभी बीमारी की वजह से उसकी मम्मी उसे देने के लिए लंच नहीं बना पाती थी।
निखिल पढ़ाई लिखाई में अच्छा था और मन लगा कर पढ़ाई करता था।
निखिल रोज पैदल ही स्कूल के लिए आता जाता था। 
स्कूल से वापस आते हुए निखिल को रोज ही वो तमाशा लगा हुआ दिखाई देता जहां पर दो भाई बहन तरह तरह का करतब दिखाते और बदले में दो चार लोग उन्हें पैसे दे देते थे। इस तरह से उन दोनों का गुजारा चल जाता था।
निखिल रोज ही उनके करतबों को देखता और खुश होता था। उसे उन बच्चों के करतब बहुत अच्छे लगते थे। कभी कभी उसे लगता कि उसे भी एक दो रुपए उन बच्चों को दे देने चाहिए लेकिन वो फिर रहने देता।
एक दिन जब निखिल स्कूल पहुंचा तो उसने देखा कि स्कूल के पास ही एक नयी स्टेशनरी की दुकान खुली थी।
सारे बच्चों ने उसी दुकान पर भीड़ लगा रखी थी।
निखिल भी उनमें शामिल हो गया।
उस दुकान पर तरह तरह की कॉमिक बुक, रंग बदलने वाले पैन, बहुत सारे तरह के भरने वाले रंग, स्टिकर्स, किताबों पर चढ़ाने वाली अबरी, चिट सभी कुछ था। निखिल विस्मित सा सब कुछ देख रहा था।
तभी उसकी नजर वहां पर रखे एक पेन सेट पर पड़ी। गोल्डन रंग के वो पेन कुछ स्पेशल ही लग रहे थे।
"अगर ये पेन मुझे मिल जाते हैं तो मेरी राइटिंग बहुत अच्छी हो जायेगी और सब लोग ये पेन देख कर कितने खुश होंगे", निखिल ने सोचते हुए कहा।
"ये कितने के हैं?", निखिल ने पूछ लिया।
"पचास रुपए के", दुकान वाले ने जवाब दिया।
निखिल ने अपनी जेब में पड़े सिक्कों को गिना।
"एक, दो, तीन…….बारह, ये तो सिर्फ बारह रुपए हैं", निखिल पैसे गिन कर उदास हो गया और दुकान से नीचे उतर आया लेकिन उसके दिमाग में अब भी वहीं पेन चल रहे थे।
स्कूल में जब इंटरवेल हुआ तो निखिल भी सभी बच्चों के साथ वहां आ गया जहां पर तरह तरह के ठेले आ जाते थे, चाट का, समोसों का, खट्टी मीठी इमली, तरह तरह की चूरन। 
रोज की तरह निखिल चाट टिक्की के ठेले की तरफ बढ़ गया कि तभी उसके सामने वो पेन आ गए तो उसने पांच रुपए की टिक्की खाने की जगह तीन रुपए का समोसा खा लिया।
घर आते हुए वो बहुत खुश था।
"आज मैने पूरे दो रुपए बचाए हैं", निखिल ने खुद से कहा।
वो दोनों बच्चे आज भी करतब दिखा रहे थे।
निखिल कुछ देर उन्हें देखने लगा और फिर घर आ गया।
घर पर भी निखिल उन पैसों का ही हिसाब लगाता रहा।
"सुबह बारह रुपए थे, आज वाले दो रुपए मिला कर पूरे चौदह रुपए हो गए हैं, अगर मैं ऐसे ही पैसे जोड़ता रहूंगा तो इस महीने के आखिर तक मेरे पास पूरे पचास रुपए हो जायेंगे और मैं वो पेन सेट ले लूंगा", निखिल ये सोच कर खुश होता रहा।
रात को सपने में भी निखिल को यहीं सब दिखाई दिया कि उसके पास वो पेन हैं और वो लिखता चला जा रहा है और स्कूल में सब उसकी राइटिंग पर शाबासी दे रहे हैं।
दिन गुजरते रहे और निखिल पैसे जोड़ता रहा।
आज जब उसने हिसाब लगाया तो उसके पास पचास रुपए में बस दो रुपए ही कम रह गए थे। वो दौड़ कर उस दुकान पर गया और उस पेन सेट को देख कर इस बात की तसल्ली कर ली कि वो पेन सेट अभी बिका नहीं है।
"बस अब दो रुपए कल के बचा कर मैं वो पेन सेट ले लूंगा", ये सोच कर निखिल के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई।
वो फिर घर आता हुआ वहां पर आया जहां पर वो बच्चे करतब दिखाते थे लेकिन आज भी वहां कोई नहीं था।
"अजीब बात है वो दोनों तीन दिन से नहीं दिखाई दे रहे हैं", निखिल ने सोचा और फिर उससे रहा नही गया तो उसने वहीं पास वाली दुकान से उनके बारे में पूछ लिया तो उसे पता चला की थोड़ी सी दूर पर ही जो पुल है वो दोनों बच्चे उसी पुल के नीचे रहते हैं।
ये सुन कर निखिल उस पुल के पास आ गया।
उसने उन दोनों बच्चों को वहीं पाया।
"तुम अपना करतब क्यों नहीं दिखा रहे हो?", निखिल ने उनके पास आ कर पूछा।
"भाई जी मेरी बहन बहुत बीमार है", लड़के ने उदास हो कर कहा।
"तो तुम इसे डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले जाते हो?", निखिल ने पूछा।
निखिल की बात सुन कर उस लड़के के चेहरे पर निराशा भरी मुस्कान आ गई।
"भाई जी हमें इतने पैसे ही कहां मिलते हैं, जो मिलते हैं उससे या तो अपना पेट भर लें या फिर दवाई कर लें", उस लड़के ने कहा।
उसकी बात सुन कर निखिल कुछ नही बोला और फिर वहां से चुपचाप आने लगा और फिर कुछ दूर जा कर रुक गया।
"अगर मैं अपने पैसों से डॉक्टर के दिखा दूं तो….लेकिन फिर वो पेन सेट के लिए फिर से पैसे जोड़ने पड़ेंगे और क्या पता तब तक वो पेन सेट बिक भी जाए लेकिन उसकी बहन कितनी बीमार है", निखिल की समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे एक तरफ वो पेन सेट था और दूसरी तरफ वो बीमार लड़की।
फिर कुछ सोच कर निखिल ने अपना बैग खोला और उसमे किताब के बीच में छिपाए हुए पैसों को कुछ देर देखता रहा और फिर एक फैसला ले कर उसने वो सारे पैसे निकाल कर बैग वापस बंद करके पहन लिया।
कुछ देर के लिए उसकी आंखों के सामने वहीं पेन सेट आ गया लेकिन निखिल फिर उन दोनों बच्चों के पास वापस आ गया।
"चलो तुम्हारी बहन को डॉक्टर के यहां ले चलते हैं", निखिल ने कहा।
"लेकिन पैसे……?", उस लड़के ने पूछा।
"फिक्र मत करो, मेरे पास हैं", निखिल ने कहा।
दोनों फिर उस लड़की को डॉक्टर के यहां ले गए।
डॉक्टर ने उस लड़की को देख कर कुछ दवाएं दी और कुछ पैसों से निखिल ने उन दोनों के लिए खाने का सामान ले लिया।
निखिल ने देखा तो उसके पास बस तीन रुपए ही बचे थे।
"भाई जी तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद जो तुमने मेरी बहन को डॉक्टर के दिखाया, मैं ये एहसान हमेशा याद रखूंगा", उस लड़के ने निखिल के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा।
"ऐसा मत कहो, मैं भी तुम्हारा करतब रोज देखता था और सोचता था कि तुम लोगों को कुछ देना चाहिए, इसी बहाने ही सही कम से कम एक बोझ सा जो मेरे मन में था वो खत्म हो गया है", निखिल ने मुस्कुराते हुए कहा।
वहां से वापस आते हुए निखिल के मन में अलग सी ही खुशी का एहसास हो रहा था। उसे पेन सेट का थोड़ा अफसोस था लेकिन किसी की मदद करने की खुशी में वो एहसास कहीं दब गया था।
अगले दिन निखिल स्कूल जाने से पहले उस दुकान में आया तो वहां पर वो पेन सेट नही था।
"अच्छा हुआ कि वो बिक गया", निखिल ने कहा और फिर अपने स्कूल आ गया।
स्कूल में प्रार्थना खत्म होने के बाद प्रिंसिपल सर मंच पर आ गए।
"मैं यहां पर कक्षा आठ में पढ़ने वाले बच्चे निखिल को बुलाना चाहता हूं", प्रिंसिपल सर ने कहा तो निखिल घबरा सा गया।
"जाओ निखिल देखो प्रिंसिपल सर तुम्हें बुला रहे हैं", निखिल के पास खड़े एक शिक्षक ने निखिल से कहा तो वो घबराता हुआ मंच पर आ गया।
"इस बच्चे से मिलो, इस बच्चे ने आज हम सबको दूसरों की मदद करने का पाठ सिखाया है, कल निखिल ने दो बच्चों की मदद की, हमें इस बारे में कभी पता नही चलता लेकिन उस वक्त वहां पर हमारे हिंदी के शिक्षक मौजूद थे जिन्होंने सब अपनी आंखों से देखा। उन दोनों बच्चों को एक संस्था को सौंप दिया गया है जो उनका अच्छे से ख्याल रखेगी। आप सभी को भी निखिल से कुछ सीख लेनी चाहिए, हमेशा दूसरों की मदद करें और मुझे निखिल को ये उपहार देते हुए बहुत खुशी हो रही है", ये कह कर प्रिंसिपल सर ने निखिल को एक उपहार दिया जिसमें वहीं पेन का सेट था जिसके लिए वो रोज अपनी पॉकेट मनी बचा रहा था।
निखिल के उस पेन सेट को देख कर आंसू आ गए। सब बच्चे खड़े हो कर उसके लिए तालियां बजा रहे थे।

(समाप्त)

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत अच्छा लिखा आने आपने💐💐💐💐💐

26 सितम्बर 2021

amit singh

amit singh

26 सितम्बर 2021

आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙂

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