“गज़ल”गज़ल की पजल मुझको आती नहीं है मगर चाह लिखने की जाती नहीं है करूँ क्या मनन शेर जगकर खड़ा जब बहर स्वर काफ़िया अपनी थाती नहीं हैं॥ लिखने की चाहत जगी भावना में कभी वह भी मुखड़ा छुपाती नहीं है॥सुनते कहाँ हैं शब्द अर्था अनेका बचपने की यादें भुलाती नहीं हैं॥ लगा हूँ तेरी आस