“गज़ल”
गज़ल की पजल मुझको आती नहीं है
मगर चाह लिखने की जाती नहीं है
करूँ क्या मनन शेर जगकर खड़ा जब
बहर स्वर काफ़िया अपनी थाती नहीं हैं॥
लिखने की चाहत जगी भावना में
कभी वह भी मुखड़ा छुपाती नहीं है॥
सुनते कहाँ हैं शब्द अर्था अनेका
बचपने की यादें भुलाती नहीं हैं॥
लगा हूँ तेरी आस में री गज़ल सुन
बिन राग कोयल गीत गाती नहीं है॥
चलो मान लेते की लय बे-बहर हैं
मगर क्या रागिनी गुनगुनाती नहीं हैं॥
गौतम किताबों में खोया हुआ है
नज़ाकत गरज पर सुहाती नहीं है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी