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“मुक्तक” लब सूखे खिलती न लाली जिस जगह कुभाव हो

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“मुक्तक”पग बढ़ा करते नहीं जब दिल के अंदर घाव हो। उठ के रुक जाते नयन जब हौसला आभाव हो। बज के रुक जाती तनिक शहनाइयाँ बारात में-लब सूखे खिलती न लाली जिस जगह कुभाव हो॥-१ कब सजा काजल वहाँ जह आँख ही तलवार हो। म्यान की क्या है जरूरत जब दिली तकरार हो। पल मुहूरत देखकर रण भूमि कब आ

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