“मुक्तक”
पग बढ़ा करते नहीं जब दिल के अंदर घाव हो।
उठ के रुक जाते नयन जब हौसला आभाव हो।
बज के रुक जाती तनिक शहनाइयाँ बारात में-
लब सूखे खिलती न लाली जिस जगह कुभाव हो॥-१
कब सजा काजल वहाँ जह आँख ही तलवार हो।
म्यान की क्या है जरूरत जब दिली तकरार हो।
पल मुहूरत देखकर रण भूमि कब आता कोई-
विध गई यदि मन को वाणी फिर कहाँ व्यवहार हो॥-२
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी