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“मुक्तक” ऋतु बसंत मदमस्त पल रीति प्रीति अनुसार॥

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“मुक्तक”रे प्रीतम मधुमास की छवि छटा एकाधिकार। डाल रंग या छोड़ दें फागुन को स्वीकार। पिया रहूँगी पाश में मत फेरों तुम नैन- खुली किवाड़ी साजना पर मेरे अधिकार॥-१साजन शिर सिंदूर है दे रहा सर्वाधिकार। होली में गोरी चली छटा रंग उपहार। कोरे कोरे गाल पर मल प्रिय लाल गुलाल।

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