“मुक्तक”
रे प्रीतम मधुमास की छवि छटा एकाधिकार।
डाल रंग या छोड़ दें फागुन को स्वीकार।
पिया रहूँगी पाश में मत फेरों तुम नैन-
खुली किवाड़ी साजना पर मेरे अधिकार॥-१
साजन शिर सिंदूर है दे रहा सर्वाधिकार।
होली में गोरी चली छटा रंग उपहार।
कोरे कोरे गाल पर मल प्रिय लाल गुलाल।
ऋतु बसंत मदमस्त पल रीति प्रीति अनुसार॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी