shabd-logo

....फिर कोई लड़की

14 मार्च 2023

10 बार देखा गया 10
आज,
फिर- 
कोई,लड़की!
बांध दी गयी,
सरकारी-
नौकरी,
जमीन-
जायदाद,
ऊंचे-
बिजनेस के साथ,
पूरे- 
धूमधाम से,
सजे-
मंडप में,
रिश्तेदारों,
नातों-
मेहमानों, 
तथा-
मित्रों की, 
उपस्थिति में।
उसे-
नहीं ब्याहा गया,
उसके-
प्रेमी से।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
article-image
50
रचनाएँ
तुम भी
5.0
--"तुम भी..." "तुम भी..."मेरी छठवीं कविता संग्रह है जो 'शब्द इन'पर आन लाइन लिखी जा रही है और वहीं से इन लाइन प्रकाशित भी होगी।यह संग्रह पूर्ण होने से पहले तक नि:शुल्क रहेगी जो पूर्ण होते ही सशुल्क कर दी जायेगी। संग्रह में संकलित मेरी कविताएं मेरी मानस नायिका पर केन्द्रित है जो व्यवहारिक जीवन में होने वाले व्यवहारों,बदलाओं अथवा परिस्थिति जन्य समस्याओं के कारण परिलक्षित होती रहती हैं।संवेदना‌ जीवन का मेकैनिज्म होता है और अगर मेकैनिज्म में गड़बड़ी हो तब जीवन प्रभावित तो होगा ही। "तुम भी..."में बनती,बिगड़ती,बसती तथा उजड़ती संवेदनाओं को रेखांकित किया गया है। "तुम भी..."को आप तक पहुंचाने में 'शब्द इन' का मैं आभारी हूं जिसने मुझे प्लेटफार्म मुहैया कराया। आशा है कि आप 'तुम भी...'को अपना बौद्धिक सहयोग देकर मेरी इस कृति को अपना स्नेह देंगे। ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
1

आवाज

24 फरवरी 2023
5
1
3

जब से-मेरी आवाज!अखरने लगी है,तुमको!तबसे-खामोशी की,चादर ओढ़ ली है,मैंने।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर ‌उप्र।

2

ताज!सा

24 फरवरी 2023
1
0
0

चंद!शब्दों में,तुम्हें-समेटने की,अभी-यह शुरुआत भर है।तुम्हें-किताबों में उतारना,मेरा-मकसद तो बाकी है।मुझे पता है,तुम!न पढ़ना और- न ही, समझना चाहती हो, इसे!फिर भी तुम्हें-ताज सा!कालजयी&n

3

नद !सी

24 फरवरी 2023
0
0
0

रौंद कर,मन!उफनती,नद! सी,जब-बढ़ती हो,किसी-और को,लेने के लिए,अपने-आगोश! में,तब-लहूलुहान!हो जाता है,दिल!© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

4

उम्र

24 फरवरी 2023
1
0
0

मैंने-अपनी कमाई!इसलिए-छिपाई!क्योंकि-कभी मैं-अपने लिए,नहीं कमाया,जैसे- तुमअपनी! उम्र छिपाई,दुसरों के लिए-जीने की, खातिर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

5

हवा का झोंका

24 फरवरी 2023
0
0
0

मैंने-अपनी कमाई!इसलिए-छिपाई!क्योंकि-कभी मैं-अपने लिए,नहीं कमाया,जैसे- तुमअपनी! उम्र छिपाई,दुसरों के लिए-जीने की, खातिर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

6

पेड़ जैसा ही

25 फरवरी 2023
1
0
0

तेरी-चाहत में,टूट जाने के,बाद भी,मैं पेड़ जैसा ही,खड़ा पड़ा हूं।जिसके-सूख जाने पर भी,इसकी दरख्तें! तेरे लिये-सर्वथा!उपयोगी ही रहेगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

7

माली और गुलाब

27 फरवरी 2023
0
0
0

आखिर!एक दिन, माली ने,इठलाते,हंसते, खिलखिलाते-कांटों के बीच,गुलाब से-पूछ ही लिया;यह बताओ?जन्म से-खिलने तक,इन-कांटों के बीच,रह कर!जब तुम-तोड़ लिये जाते हो,किसी-और के लिए,तब तुम्हें-दुख नहीं हो

8

फितरत

28 फरवरी 2023
1
0
0

तेरी-फितरत ने,बार-बार,मेरे-परवरिश की,परीक्षा ली।मेरी-वफाएं!हर बार,तेरी-बे वफाई की,भेंट चढ़ीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

9

नज़रअंदाजी

1 मार्च 2023
0
0
0

तेरी-नज़रअंदाजी!जिस कदर,बढ़ती जा रही,उससे तो-यही,सोचता हूं कि-तुम्हें!मनाने के बजाय,तेरे बिना,रहना ही,सीख जाऊं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

10

बहाना

4 मार्च 2023
0
0
0

चलो!कुछ पल,उन लम्हों को- जिया जाये,जब-कहा करती थी,तुम!आने का- बहाना,ढ़ूढ लेना,मैं तुम्हें!रोकने का,बहाना!ढ़ूढ लूंगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

11

दिलासा

6 मार्च 2023
0
0
0

--------------------------------------------------मैं!जल्दी ही,आ जाउंगी,इंतजार मत करना।तुम!जाते वक्त,दिलासा देते हुई,कही थी मुझसे।लेकिन-तुम्हें क्या पता?यह इंतजार ही,मेरा जीवन है।शायद!तुम्हें अंदाजा न

12

होली

7 मार्च 2023
0
0
0

कर रहे हैं,पांव नर्तन!उठ रहीं-मन में,हिलोरें!बज रहे-घुंघुरु पांव के,कह रहे-कानों के पर्दे,आज-कंगन! की खनक ने,फिर-चौंका दिया है,मन को,लग रहा-साजन हमारा,द्वार पर है,आ खड़ा।तरस रही थी,दीदार को,&nbsp

13

तेरे लिये

9 मार्च 2023
0
0
0

तेरे लिये-मुझसे!ज्यादा खास,अक्सर-कई!और लोग,होते गये।मुझे-इसका ज़रा भी,बुरा!नहीं लगा, कभी भी।दुख तो-तब हुआ,जब तुम,नज़रअंदाज!करने लगी मुझको।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

14

तेरी उड़ान

13 मार्च 2023
0
0
0

आकाश में,उड़ने वाली,हे पतंग!मत भूलो-जब तक-मैं साथ हूं,तेरी उड़ान,तभी तक है,मेरा साथ छूटा-तेरी उड़ान रुकी।मैं वह धागा हूं-जो तुम्हें संभाले हूं।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

15

....फिर कोई लड़की

14 मार्च 2023
1
0
0

आज,फिर- कोई,लड़की!बांध दी गयी,सरकारी-नौकरी,जमीन-जायदाद,ऊंचे-बिजनेस के साथ,पूरे- धूमधाम से,सजे-मंडप में,रिश्तेदारों,नातों-मेहमानों, तथा-मित्रों की, उपस्थिति में।उसे-नहीं ब्याहा गया,

16

एक दिन

18 मार्च 2023
0
0
0

एक दिन-वह!समय भी,आयेगा।जब-ढुंढने पर, मैं- नही मिलूंगा,तब, तुम्हें- मेरी याद आयेगी,और-तेरी आंखों में,समंदर भी होगा।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

17

बे बश

19 मार्च 2023
0
0
0

मैं भी-बे बस हो,टुटता रहा,कभी-किस्मत के कारण,तो कभी-दुसरों के द्वारा,फूलों की तरह।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

18

जिद,मत कर

22 मार्च 2023
0
0
0

मैंने-समझाने की,बहुत कोशिश की,अपने आपको।यह, कह कर कि-बहुत जिद,मत कर तूं,उन्हें- याद आने को।तुम! जिसके ख्यालों में हो,वो किसी- और में समाई हुई है।मत लांघो-अपना दायरा!उसे जब- मर

19

इजाज़त

26 मार्च 2023
0
0
0

तुम्हें-याद है,मैंने-रुंधे स्वर में,जब 'इजाजत'मांगी थी,तुमसे-अपने,दिल पर,पत्थर रखकर।तुम भी-सिसकियों पर,पहरा! बिठा-भर्रायी आवाज में,बोल पड़ी थी-'इजाज़त' है।इस-इजाज़त के बीच-बस!एक दरिया,रह गयी थी-आंसुओ

20

तेरे जाने के बाद

29 मार्च 2023
0
0
0

तेरे-रहने पर,जो गुस्सा!क्रोध से- आता था,अक्सर।अब!तेरे- जाने के बाद,पश्चाताप देकर-तिरोहित है,न जाने कहां।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

21

बे घर होकर

3 अप्रैल 2023
0
0
0

लोग!क्या बंद करेंगे,मेरे लिये,अपने दिलों के दरवाज़े।कईयों को तो,मैंने-बसा दिया है,दिल के घरों में,खुद-बेघर होकर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

22

धड़कनें

5 अप्रैल 2023
0
0
0

जिन-पत्थरों को,मैंने- धड़कनें दीं,वही-बंद कर दिये,मेरी-धड़कनों को,मुझे!पत्थर समझ कर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

23

कर रहे हैं,पांव नर्तन

12 अप्रैल 2023
0
0
0

कर रहे हैं,पांव नर्तन!उठ रहीं-मन में,हिलोरें!बज रहे-घुंघुरु पांव के,कह रहे-कानों के पर्दे,आज-कंगन! की खनक ने,फिर-चौंका दिया है,मन को,लग रहा-साजन हमारा,द्वार पर है,आ खड़ा।तरस रही थी,दीदार को,&nbsp

24

स्वप्न बुनती स्त्री

13 अप्रैल 2023
0
0
0

उसके-लाल होंठ!नीले-पड़ गये थे,एक-आलिंगन बद्ध,चुम्बन के लिये!और-यह कामना,पूरी होते ही,उसके-पेट के बीच में,लज्जा, तथा-धैर्य को तोड़ती,दो लकीरें!उभर आयी।वह-स्वयं को,समाहित करने की,लालसा के साथ,समाहित!कर

25

तुम हो

17 अप्रैल 2023
0
0
0

जानती हो?तेरे-जाने के बाद,जब-रात में मैं उठा,तब-खिड़की के;बाहर वाले पेड़ की,फुनगी के-झुरमुट से,चंदा!! झांक रही थी,मैं समझा-तुम हो।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

26

तुम जैसी

18 अप्रैल 2023
0
0
0

आज रात-जैसे ही,बादल छटी,चांदनी!पूरे आकाश में,छा गयी।नीले परिधान में,चंदा!!हू ब हू-तेरे जैसी लगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

27

अपनेपन का टोन

19 अप्रैल 2023
0
0
0

अब तो-तुम्हें!नहीं रहती,मेरे!फोन के घंटीयों का,इंतजार।अब तुम-फोन उठाते ही,नहीं कहती-"मिल गइल टाइम?"तेरी आवाज़ में,अपनेपन का-अब वह रुठापन!नहीं मिलता।अब तो-झुंझलाहट का, रुखापन!जगह बना लिया है,तेरी

28

पुरुष

20 अप्रैल 2023
0
0
0

क्या?कभी सोचा है,जीतने के लिये,पैदा हुआ पुरुष!हार जाता है-स्त्री के प्रेम में,अपना-सब कुछ;लेकिन- जब छोड़ जाती,कोई स्त्री!उसे ठुकराकर,तब-वही पुरुष!!टूटकर-उखड़ जाता है,अपनी-जड़ से,जड़ बना।© ओंकार न

29

ख़िलाफ़

23 अप्रैल 2023
1
0
0

मैं तो,तेरी-खिलाफ़त ही,नहीं कर सकता।क्योंकि-ऐसा करने पर,मेरा दिल ही,मुझसे-बगावत कर देगा,हर बार।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र

30

एक अकेला

29 अप्रैल 2023
0
0
0

जिसकी-खातिर! बुरा रहा मैं-अपनों में,उसने अपना-भला कहां? समझा है-अब तक हमको।पीसे जा रहा,देखो मैं तो! हरपल-अपने और पराये में,एक अकेला!लड़े जा रहा है इससे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशा

31

जब ..…..रहती हो

29 अप्रैल 2023
0
0
0

हे!गुलमोहर!!चिलचिलाती-कड़ी धूप को,झूठलाते हुई,सूर्ख लाल!चुनरी को पहने,जब खड़ी रहती हो,आकाश के नीचे,निर्विकार!नि:स्वार्थ !!ऐसे में,थके हारे-जीवन के ,अवसादी! उमस के मारे,पथिक को!जब देती हो,शीतलता!!

32

विभेद नहीं रहा

30 अप्रैल 2023
1
0
2

तेरी-नज़रों में,मैं, कब?चाहत! लगा,और, कब-जरुरत!!यह तो-नहीं मालूम मुझे,लेकिन-मेरी आंखों में,तेरी नज़रों का-विभेद! नहीं रहा।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

33

अज़ीज़

6 मई 2023
0
0
0

कभी-अज़ीज़ था उसका,मगर, अब-नाचीज़ लगता हूं।जबसे-करीब होती गयी,वो,नये-ंउस रकीब से।मैं, तो-नजीब!हबीब ही रहा,उसके लिए ।फिर-न जाने किस,खता का- सलीब!! दिया उसने?-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर

34

भरोसा

9 मई 2023
0
0
0

मेरे-आंसुओं का कारण,मेरा! वह भरोसा, और-विश्वास है,जिसे-उसी ने,तार-तार,कर दिया,जिसपर-सबसे ज्यादा रहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

35

रिश्ते!

10 मई 2023
0
0
0

बे शक!मैं उसकी-औकात के आगे,कुछ भी नहीं। लेकिन- मेरी दौलत को,मत देखना-मेरे साथी।रिश्ते!!अक्सर,गरीब ही-निभाया करते हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

36

पलटकर देखी नहीं

11 मई 2023
0
0
0

जानती हो?यह सोचकर कि-एक दिन,तुम, चली जाओगी,जब मुझे छोड़कर,तब मुझे-दुख नहीं हुआ,क्योंकि-एक दिन तो,यह होना ही है।हां,कष्ट हुआ!उस दिन-जब, जाते वक्त!तुमने-मुझे, मुड़कर,देखा ही नहीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अश

37

टुटता रहा

12 मई 2023
0
0
0

अपने-बदलाव से,तुम, तोड़ने लगी,मुझे!!और, मैं-टुटता रहा,आहिस्ते!आहिस्ते!!जानना-नहीं चाहोगी?ऐसा क्यों-किया मैंने?ताकि-शोर! न उठे,और तुम!बदनाम न हो। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्

38

उदासी

14 मई 2023
0
0
0

जब-उदास होती हो,मुझसे-रुठकर तुम!तब-छिप जाती हो,अवसाद के-अमावस के पीछे;जैसे-छुप जाता है चांद!बादलों की आड़ में-चांदनी से।और-उदासी!! छा जाती है,नभ तल में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशा

39

याद आता ही नहीं

15 मई 2023
0
0
0

जिसे-उम्र भर,भुला न सकाउसे मैं-याद!आता ही नहीं।इसी-सोच में,बेखबर रहा,खुद से।जब-बेवफ़ाईयों पर,सवालात से-रुबरु हुआ।तब-इर्द गिर्द के,कहकहों से-मन भर आया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्

40

देवियां

16 मई 2023
0
0
0

जब-देवियां स्त्री हैं,तब-हमें स्त्रीयों में,सिर्फ-रक्षाबंधन के,दिन ही,क्यों दिखती हैं,देवियां!इन्हें स्त्रियों में?क्यों नहीं-देखते हम,उनमें-देवी का रुप,उन्हें-प्रताड़ित और-बे आबरु- करते समय?© ओं

41

किसी और से....

18 मई 2023
0
0
0

एक-आदत सी,हो गयी है,मुझे-तुम्हें! याद,करते रहने की।वरना-व्यस्त मैं भी,हो गया होता,तेरी!! तरह,किसी और से बतियाने में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:

42

कत्तई नहीं...

20 मई 2023
0
0
0

मेरा-यह दावा!कत्तई नहीं है,कि, मैंने-कुछ किया है,तेरे लिये‌।मैंने तो-खुद! उमस भरी,जिंदगी जी कर,तुमको-शीतलता से, लबरेज़!!जिंदगी तक,पहुंचाने का,प्रयास भर किया है।वह भी,खुद! अपनी- खुश

43

नज़राना

23 मई 2023
0
0
0

तुम तो-उठा ले गयी,बीन बीन कर,यादें सब अपनी,जिन्हें-संजोकर! रख, रक्खा था,मन के, ढ़ाढस की खातिर ।जरा,दया-न आयी तुमको,मुझ पर-अपनी चहक के आगे।अपनी खुशियां,बेंच बेंच कर,तेरे लिये-खुशीयों को खरीदा।पेश

44

पुष्प से

27 मई 2023
0
0
0

एक दिन-पुष्प ने,आखिर भौंरे से-पूछ ही लिया,क्या बगल वाली,कली!जब खिल जायेगी,तब भी तुम,मेरे -पास ही आओगे?भौंरे ने,पुचकारते हुए कहा-कैसी बात-करती हो तुम,तुम्हें छोड़कर!मैं कहां जा सकता?पुष्प!तसल्ली की सां

45

खास और आम

28 मई 2023
0
0
0

तुम-मेरे लिए,हरदम-खास बनी रही,और-मैं तेरे लिये,केवल आम ही रहा।तेरी-तृष्णा की प्यास,और, उसे- बुझाने का,मेरा जज्बा, तृप्ति के बाद!तुम तो चल दी,मुझे रुलाकर ।लेकिन- पता नहीं,मेरे दर्द

46

औकात बताई

29 मई 2023
0
0
0

मेरी-मुहब्बत को,छोड़कर,बाकी-मेरी हर,ग़लतियों का,पूरा हिसाब है,उनके पास।जिसे-हमदम समझा,उसी ने,हर कदम पर,मुझे-मेरी औकात बताई।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

47

चीख

30 मई 2023
0
0
0

अब तो,उसे-मेरी चीख भी,नहीं-सुनाई देती,कल तलक,जो मेरी-धड़कनो की,आवाज! समझती थी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

48

एहसान

1 जून 2023
0
0
0

तेरी-बेवफ़ाई ने,एहसान किया है,मुझ पर।जानती हो क्या?मुझे-बेवफा होने से,बचा लिया। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

49

दर्द,तो-

3 जून 2023
1
0
0

यूं तो-मैं सह लूंगा,तेरे दिये-इस चोट को भी,लेकिन-इसका मतलब,यह नहीं कि-मैं पत्थर हूं,दर्द!तो-मुझे,होगा ही,जैसे-तुमको होता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

50

गुमुन्नी

5 जून 2023
1
0
0

जब- तेरी गुमुन्नी!सारा चैन- छीन लेती है,तब भला-तेरा न होना,कितना-भारी पड़ता है,इसका-अंदाजा है तुमको?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए