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1-बायोकेमिक चिकित्सा

29 अक्टूबर 2022

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  1-बायोकेमिक चिकित्सा

  जीते तो सभी है परन्तु अपने अन्दाज में जीने का सौभाग्य बहुत ही कम लोगों को मिल पाता है । जिसने जीवन के रहस्यों को जान लिया कि मृत्यु अवश्यम्भावी है । जिसे कोई नही टाल सका , वही इन्सान अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसा कर गुजरता है कि लोग उसे युगों युगों तक याद करते है । जब कभी हम अपनी जिन्दगी का विश्लेषण करते है तब हमें बडा दु:ख होता है  कि हमने अपना कितना बहुमूल्य समय व्यर्थ ही गवा दिया । हमने अपने लिये या समाज के लिये क्या किया क्या हमारा अपना कोई ऐसा निर्माण या रचना है जो हमारे बाद भी याद रखी जायेगी , जिससे लोगों का भला होगा,  क्या हमारा कार्य आने वाला पीढी का आदर्श बन सकेगी ।

  सन 1821 ई0 को डॉ0 विलहैम हैनीरिच शुसलर करा जन्म इसी माह की 21 अगस्त को ओल्डन वर्ग जर्मनी में हुआ था । आपका बचपन भी अन्य महापुरूषों की तरह सधर्ष एंव आर्थिक परेशानियों से गुजरा । इस महत्वाकांक्षी होनहार युवक की अभिलाषा एक होम्योपैथिक चिकित्सक बनने की थी । उस जमाने में होम्योपैथिक की पढाई अलग से  नही हुआ करती थी । इसलिये आपने ऐलोपैथिक चिकित्सा का अध्ययन किया बाद में अपनी जन्मूमि वापिस आकर 1857 मे आपने 36 वर्ष की आयु में होम्योपैथिक चिकित्सा प्रारम्भ कर दी । होम्योपैथिक के आविष्कारक डॉ0 हैनिमैन ने सर्वप्रथम पार्थिव लवण पोटैशियम सोडा लाईम एंव सिलिका  का परिक्षण किया और सदृष्‍य चिकित्सा होम्योपैथि में उसका प्रयोग किया था । उन्होने ही सर्वप्रथम बायोकेमिक चिकित्सा का रास्ता प्रशस्त किया , बाद में डॉ0 स्टाफ ने भी इस बात का समर्थन किया और कहॉ कि रोग को दूर करने के लिये मनुष्य शरीर के सभी उत्पादन जिनमें नमक (तन्तु प्रमुख है ।

   डॉ0 शुसलर ने ही हैनिमैन के बतलाये सिद्धान्तों पर चल कर बायोकेमिक चिकित्सा प्रणाली का वैज्ञानिक  ढंग से विश्लेषण  किया ।

 अतः बायोकेमिक चिकित्सा के आविष्कार का श्रेय डॉ0 शुसलर सहाब को जाता है । उन्होने देखा कि कई ऐसे रोगी जो निरोग नही हो रहे थे , उन्होने प्राकृतिक पदार्थ देकर देखा उक्त सिद्धान्तों एंव विचारों के आधार पर उन्होने मानव के रक्त , हडडी , थूक ,राख  इत्यादि का विश्लेषण कार्य प्रारम्भ किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुॅचे कि मानव शरीर में बहने बाहने वाले रक्त में दो पदार्थ पाये जाते है । 

  1- आगैनिक (कार्बनिक

  2- इनागैनिक (अकार्बनिक

  इनमें से किसी भी पदार्थ की कमी हो जाने से मानव शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है एंवम इनकी पूर्ति कर देने से शरीर निरोग व स्वस्थ्य हो जाता है ।

  सन 1832-1844 के आर्चिव्ह जनरल में निकला , मानव शरीर के विभिन्न अंग जिन आवश्यक पदार्थो से बने है वे पदार्थ स्वय बडी औषधियॉ है । डा0 कान्सरेन्टाइन हेरिंग ने भी एक लेख लिखा था मानव शरीर की रचना में पाये जाने वाले पदार्थ उन अंगों पर अपनी विशेष क्रिया प्रगट करते है । जहॉ वे पाये जाते है व कार्य करते है इसके कारण पैदा होने वाले लक्षणों पर यह पदार्थ। अपना  अपना कार्य पूर्ण रूप से करते है । डॉ0 शुसलर सहाब ने इन्ही सिद्धन्तों का गंभीरता से अध्ययन किया ।

  मानव शरीर में ग्यारह प्राकृतिक क्षार (मिनरल साल्टस  तथा 12 वा क्षार सिलिका है । इसका सिद्धान्त इस प्रकार है - मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी 25 प्रतिशत कार्वनिक पदार्थ एंव 5 प्रतिशत खनिज पदार्थ एंव अकार्वनिक पदार्थ है । यह खनिज क्षार सख्या में बारह है जो शरीर के कोषों का निर्माण करते है । इन क्षारों में से किसी भी क्षार की कमी हो जाने से बीमारीयॉ उत्पन्न होती है । एंव उस क्षार की पूर्ति कर देने से वह निरोगी हो जाता है ।

  सन 1873 ईस्वी में जर्मनी  के पत्र के अंक में अपनी इस चिकित्सा पद्धति पर एक लेख लिखा उन्होने इस बात को स्वयम स्वीकार किया कि बायोकेमिक चिकित्सा प्रणाली में प्रयुक्त होने वाली कुछ औषधियों के लक्षण  होम्योपैथिक सिद्धान्तों के अनुसार अपनाये जाते है । बायोकेमिक औषधियॉ बनाने व शक्ति परिर्वतन करने की समस्त विधियॉ होम्योपैथिक  विधि पर आधारित है । परन्तु  प्रयोग में लाये जाने वाले सिद्धान्तों में कुछ भिन्नता होने के कारण डॉ0 शुसलर इसे होम्योपैथिक से अलग चिकित्सा मानते है ।

  आपने इस चिकित्सा प्रणाली का नाम जीव रसायन रखा । बायोकेमिस्ट्री शब्द ग्रीक भाषा  के बायोस तथा केमिस्ट्री इन दो शब्दों से मिल कर बना है । बायोस का अर्थात जीवन  तथा केमिस्ट्री का अर्थ रसायन शास्त्र अर्थात हम इसे जीवन का रसायन शास्त्र कह सकते है । आपने अपनी चिकित्सा प्रणाली को पूर्ण बनाने के लिये अथक परिश्रम किया । आज बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति को होम्योपैथिक चिकित्सा के साथ शम्लित कर लिया गया है । केवल उपयोंग में लाने के सिद्धान्तों में भिन्नता है । 

 डॉ0 शुसलर ने 12 तन्तु औषधियों का आविष्कार किया यह दबा न तो विषैली है न ही इसका हानिकारक प्रभाव है, इन औषधियों को आपस में मिला कर भी दिया जा सकता है । शरीर में किस शाल्ट की कमी है, यह औषधियों के लक्षणों द्वारा आसानी से समक्षा जा सकता है । शरीर में जिस औषधिय की कमी होती है वह औषधिय अन्य औषधियों की अपेक्षा मीठी व जीभ में रखने पर जल्दी धुल जाती है । उसी तत्व की पूर्ति कर देने से रोगी स्वस्थ्य हो जाता है । शारीर में जिस दवा की आवश्यकता नही होती वह देर से घुलती है एंव कडवी लगती है ।

  औषधिय निर्माण बायोकेमिक दबाययें होम्योपैथिक दबाओं की ही तरह दशमिक अथवा शतमिक क्रम के विचूर्ण अथवा द्रव रूप में तैयार की जाती है । औषधि की एक मात्र को नौ गुना शुगर आफ मिल्क के साथ कम से कम दो घन्टे तक खरल करने से 1एक्स शक्ति की दबा तैयार होती है । इसके एक भाग में पुन:  नौ भाग शुगर आफ मिल्क के साथ मिलाकर विचूर्ण करने से 2-एक्स शक्ति की दवा तैयार होती है । पुन: इसके एक भाग में नौ भाग शुगर आफ मिल्‍क मिला कर खरल करने से जो आगे का क्रम तैयार होता है उसे 3-एक्‍स पोटेंसी कहते है । इसी प्रकार आगे की पोटेंसी बनाई जा सकती है । बायोकेमिक की बारह दवाये निम्‍नानुसार है । इन दवाओं के रोग लक्षणानुसार अकेली या आपस में मिला कर भी दी जा सकती है । रोग स्थितियों के अनुसार इसके कॉम्‍बीनेशन उपलब्‍ध है ।

  बायोकेमिक की बारह दवाओं में पॉच-फॉस्‍फेटस, तीन-सल्‍फेट, दो-म्‍यूरेटस, तथा एक- फ्लोराइड, एंव एक-सिलिका अर्थात साइलिशिया है । 

1-कैल्‍केरिया फ्लोरिका :- शरीर में गांठों का बनना, हड्डीयों का बढना,जहॉ कही भी शरीर में गांठे बनती हो जो सख्‍त हो जाती हो ,चाहे वह मॉस पेशियों में हो, ऑख पर मोतियॉ बन्‍द, गांठो के बनने पर व उसकी प्रवृति के रोगों पर प्रभावकारी होने से टयूमर, मोतियाबिन्‍द, टांसिल ,हड्डीयों के बढ जाने ,सडने गलने आदि पर इसका प्रयोग होता है । यह सर्द प्रकृति के रोगियो की दवा है ।

  2- कैल्‍केरिया फॉस्‍फोरिकम:- यह कैल्‍केरिया तथा फॉसपोरस को मिश्रण से निर्मित लवण है , कैल्‍कैरिया फॉस की कमी हो जाने पर शरीर में नये सैल्‍स का निर्माण नही होता, कैल्‍कैरिया फॉस का कार्य है शरीर में नये सैल्‍स का निर्माण करना है ।  कैल्‍सियम एंव फॉस्‍फोरस की कमी की वहज से शारीरिक एंव मानसिक विकाश के रूक जाने पर , दोषपूर्ण शारीरिक व मानसिक विकाश , दॉतों का समय पर न निकलना, बच्‍चा पतला दुबला जिसके छाती की हड्डीयॉ स्‍पष्‍ट दिखलाई देती है ।

 3- कैल्‍केरिया सल्‍फ्युरिकम:- कैल्‍केरिया सल्‍फ का मुंख्‍य कार्य पकने व पीव जमने पर होता है शरीर के किसी भी स्‍थान में पस बनने पर , घॉवों के पस फारमेशन की वजह से धॉवों का समय पर न भरना आदि में इसका उपयोग होता है यह गर्म प्रकृति के रोगीयों की दवा है ।

 4-फैरम फॉस्‍फोरिकम :-फैरम फॉस में फैरम अर्थात लोहा है इसका कार्य आक्‍सीजन को शुद्ध हवा से खीचना है । हमारे शरीर के रक्‍त कणों में मौजूंद फैरम (लोहा) शुद्ध हवा से आक्‍सीजन को खींच लेता है ,फैरम की कमी से शरीर में आक्‍सीजन की कमी से जो रोग होते है उनमें यह दवा कार्य करती है जैसे आक्‍सीजनकी कमी से रक्‍त प्रणाली ढीली पड जाती है ,रक्‍त संचय होने लगता है जिकी वजह से सूजन शोथ होने लगता है ,सफेद तरल पदार्थ  रिसने लगते है इस लिये इसका उपयोग शोथ, सूजन, ज्‍वर,दस्‍तों की प्रथम अवस्‍था में प्रयोग करते है , यह रक्‍त की कमी एंव रक्‍त स्‍त्रावों में भी उपयोगी है ।

 5-कैली म्‍यूरियेटिकम:-यदि शरीर में इस लवण की कमी हो जाये रूधिर में जमने वाले नाईट्रोजन युक्‍त फाईब्रिन बाहर निकलने लगते है जो नॉक ,मुंह ,कान ,जीभ आदि से बाहर निकलने लगते है, जो थूंक या पस के रूप में दिखलाई देते है  । यह दवा कॉन के रोगों में उपयोगी है । प्रकृति सर्द है ।

 6-कैली फॉस्‍फोरिकम:- डॉ0 शुस्‍लर का कथन है कि यह मस्तिष्‍क के सैल्‍स का घटक है इसकी कमी से मस्तिष्‍क सम्‍बन्धित रोग उत्‍पन्‍न्‍ा हो जाते है इसकी कमी से ज्ञान तन्‍तुओं में निर्बलता आ जाती है जिसकी वजह से रोगी में निराशा भाव आ जाता है ,रोगी चिन्‍ताग्रस्‍त ,भयग्रस्‍त ,तथा उसे नीद नही आती ,स्‍मृति शक्ति कमजोर हो जाती है रोगी शीत प्रधान होता है ,रोगी स्‍नायु प्रधान होता है छोटी छोटी बातों से परेशान हो जाता है , उसके समस्‍त रोग ठंड से बढते है

 7-कैली सल्‍फ्युरिकम :- इसकी कमी से शरीर में आक्‍सीजन की सप्‍लाई उचित ढंग से नही होती ,ऑक्‍सीजन को शरीर के समस्‍त सैल्‍स तक भेजने का कार्य कैली सल्‍फ्यूरिकम का है । इसकी कमी से शरीर में ऑक्‍सीजन की पूर्ति उचित ढग से नही होगी जैसे कि फैरम फॉस का कार्य शुद्ध हवा से ऑक्‍सीजन को खींचने का है ,परन्‍तु उसे यथास्‍थानों तक पहुंचाने का कार्य कैली सल्‍फ्युरिकम का है । ऑक्‍सीजन का शरीर में समान रूप से वितरण न होने पर जो रोग होते है वह उत्‍पनन हो जाते है ,रोगी का दम धुटने लगता है ,ऑक्‍सीजन की कमी से रोगी को भारीपन ,थकावट ,चक्‍कर आना ,चित्‍त उदास रहना ,चिन्‍ता तथा ऑक्‍सीजन जो शरीर के कोशिकाओं में दहन हो कर गर्मी पैदा करती है यदि इसकी कमी हो जाती है तो रोगी को अत्‍याधिक ठंड लगती है ,त्‍वचा के छिछडे निकलने लगते है तथा नये कोशिकाओं के निर्माण में बाधा उत्‍पन्‍न्‍ हो जाता है एंव पुराने सैल्‍स शरीर से बाहर नही निकल पाते । दवा गर्म प्रकृति के अनुकूल है । 

 8-मैग्‍नीशिया फॉस्‍फोरिकम:- इस लवण की कमी से नर्व तन जाते है एंव उत्‍तेजित हो जाते है जिसकी वजह से नर्व में र्दद पैदा हो जाता है ,ठंड से र्दद बढता है एंव गर्मी से कम होता है ,स्‍नायुशूल नर्व की उत्‍तेजना से पैदा होने वाले रोगों पर जैसे अकडन,र्दद , पेट र्दद जबडे का अकड जाना आदि में इसका उपयोग किया जाता है ।

 9-नेट्रम म्‍यूरियेटिकम :- इस साधरण नमक से बनाया जाता है । नमक की कमी से उत्‍पन्‍न्‍ा होने वाले रोगों में नेट्रम म्‍यूर की शक्तिकृत दवा का उपयोग किया जाता है । यह लवण हमारे शरीर की जैविक क्रिया में सहायक होते है यह जल को शरीर में शोषित करते है एंव शरीर में तथा रक्‍त में पहुच कर आर्द्रता की मात्रा को बढाते है शरीर में कोशिकाओं की वृद्धि एंव विभाजन में इनका योगदान होता है यदि हमारी कोशिकाओं में नमक की कमी हो जाये तो जल जनित रक्‍ताल्‍पता उत्‍पन्‍न हो जाती है ,इसकी विश्रृखला से जल संचय होने लगता है इससे अश्रुगन्थियों से ऑसू निकलने लगते है पनीला अतिसार , जब कभी शरीर से सोडियम क्‍लोराईड या अन्‍य लवण रक्‍त से निकल गये हो तो शरीररिक तरत पदार्थ अस्‍वाभाविक रूप से कार्य करने को बाध्‍य हो जाते है तब यही नेट्रम म्‍यूर ही शारीरिक तरल पदार्थो को स्‍वाभाविक रूप में लौटा देती है । रोग धुंधली दृष्‍टी पढते समय अक्षरों का आपस में जुड जाना ,पुष्‍टी कारक भोजन करने पर भी दुर्बल होते जाना , शरीर नीचे से सूखता है ,अत्‍याधिक भूंख लगने पर भी दुर्बलता ,लडकीयों में रक्‍त की कमी ,शोक ,भय , क्रोध के दुष्‍परिणाम ,सूर्य उदय से सूर्य अस्‍त तक होने वाला सिर र्दद आदि में इसका उपयोग होता है ।

10-नेट्रम फॉस्‍फोरिकम:-हम जो भी खते है वह लैक्टिक ऐसिड में परिवर्तित हो जाता है परन्‍तु यदि यही लैक्‍टिक ऐसिड हमारे पेट मे ही पडा रहे तो वहॉ ऐसिडिटी पैदा करता है लैक्‍टिक ऐसिड को नेट्रम फॉस कार्बोनिक ऐसिड एंव पानी में विभक्‍त कर देता है । इसकी कमी से खटटी डकारे आती है ,खट्टी कैय होती है , अम्‍ल की अधिकता के कारण पीले दस्‍त होने लगते है ,पेट में र्दद होता है , इसके उपयोग से पेट के कीडे बाहर निकल जाते है ,इसकी कमी से शरीर में यूरिक ऐसिड जमा होने लगता है इससे गठिया , वात रोग की शिकायते होने लगती है । लिम्‍फैटिक ग्‍लैंडस में लैक्टिक ऐसिड जमा हो कर एल्‍ब्‍युमिन को जमा कर देता है जिसका परिणाम यह होता है कि ग्‍लैन्‍ड में सूजन आ जाती है । पुरानी बदहजमी, ऐसिडिटी, खट्टापन, खट्टी उल्‍टी,ऐसिडिटी के कारण सिर र्दद आदि में 

11-नेट्रम सल्‍फ्यूरिकम:- नेट्रम सल्‍फ का काम सल्‍फ्यूरिक ऐसिड को तोडकर पानी को खींच लना है परन्‍तु यह व्‍यर्थ पानी शरीर से निकलना चाहिये नेट्रम सल्‍फ की कमी हो जाने पर यह व्‍यर्थ पानी शरीर में एकत्र होने लगता है इससे शरीर के सैल्‍स (कोशिकाये) व फाईबर्स (तन्‍तु) में यह अव्‍यर्थ जल संचय होने लगता है ,इससे जिन अंगों में यह संचय हो रहा है उनकी वृद्धी होने लगती है , जिगर बडा मालुम होता है कोशिकाओं तन्‍तुओ के खाली स्‍थान में पानी भर जाने से उसके दबाब से जिगर के सैल्‍स से पित अधिक निकलने लगता है इससे पीले रंग के दस्‍त होने लगते है जब इसकी कमी हो जाती है तब दस्‍त का रंग सफेद होने लगता है तिल्‍ली में पानी जमा होने के कारण सूजन आ जाती है । नेट्रम सल्‍फ अवाछनीय पानी को बाहर फेक देता है । शरीर में इसकी कमी से जो गंदा पानी जमा होने लगाता है जिसकी वजह से जलोदर ,सिर में जल संचय ,अंडकोषों  में जल संचय ,शरीर का फूलना आदि में इसका उपयोग हितकर है

12- साइलीशिया:- डॉ0 शुस्‍लर का कथन है ‍कि शरीर के तन्‍तुओं की रचना में साइलिशिया होता है अगर शरीर की कोशिकाओं में इसकी कमी हो जाये तो शरीर से अव्‍यर्थ पदार्थो को बाहर निकालने की शक्ति कम हो जाती है । इसका कार्य शरीर से विजातीय तत्‍वों को बाहर निकालने का हे । यूरिक ऐसिड के जमा होने से गठिया हो जाता है यदि यह गुर्दे में जमा हो जाये तो गुर्दे में पथरी बन जाती है । रोग ऑखों से एकाएक दिखना बन्‍द हो जाना , मोतियाबिन्‍द , इसके रोगी का शीरीर दुर्बल ठिगना होता है । इसके बच्‍चों में अच्‍छा खाने पीने पर भी पोषण का अभाव के कारण पुष्‍ट नही होता ,माथे से गर्दन तक बदबूदार पसीना , नीद में तकिया भींज जाती है ,गण्‍डमाला तथा रिकेट दोष्‍ा, बच्‍चों में सूखे की बीमारी ,बच्‍चों की बढत रूक जाती है ,डरपोक ,अपनी योग्‍यता पर सन्‍देह परन्‍तु कार्य को हाथों में लेते ही उसका निर्वाह कुशलतापूर्वक कर लेता है । दिमाकी कार्य करने वालों की मानसिक थकावट विद्यार्थीयों की दिमाकी कमजोरी ,कुछ निश्चित विचारों का आना ,पॉवों से बदबूदार पसीना, धॉवों में मवाद धीरे धीरे बनती रहने पर पस को शरीर से बाहर निकाल कर धॉवों को सूखा देना ,भगंदर ,कब्‍ज आदि में ।

 

नि:शुल्‍क परामर्श हेतु आप सुबह 10 बजे से 4 बजे तक फोन कर सकते है

 

  डॉ0 सत्‍यम सिंह चन्‍देल (बी0 एच0 एम0 एस0,एम0डी)

    जन जागरण चैरीटेबिल चिकित्‍सालय

 हीरो शो रूम के बाजू से नर्मदा बाई स्‍कूल के

 पास बण्‍डा रोड मकरोनिया सागर  मो0 9926436304 - 9300071924-9630309033  

    

 

H:\year 2019-20\year 2020-21\Artical\बिवाइयॉ.doc

 

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