आओ जानते हैं..17 फरवरी 1985 का रहस्य...
दोपहर के लगभग 1:00 बजे का समय है l अचानक मार्केट में भगदड़ मची हुई है l एक 10 - 11 साल का लड़का जिसका नाम मुकेश है l अपनी दुकान जो मार्केट में पैतृक संपत्ति पर बनी हुई है, उन्हीं दुकानों पर बैठा हुआ हैl क्योंकि कई दिनों से उसके पिता बालकिशन जो प्रबुद्ध कलमकार है, घर नहीं आए हैं और अपने पिताजी का इंतजार कर रहा होता है l मची भगदड़ में किसी ने मुकेश से बोला कि भूढ़ा किशनगढ़ी (बोनेर) पुलिया पर एक लाश पड़ी हुई है देख कर आओ किसकी है l सड़क पर सड़क जा रही बेलगाड़ी में बैठकर मुकेश घटना स्थल पर पहुंचता है और देखता है l एक लाश जो तेजाब डालकर चेहरा झुलसा हुआ है l जिस लाश पहचान पाना बहुत मुश्किल है मानो लाश कई दिनों तक किसी बंद जगह रखी उस में से बदबू भी आ रही थी और उसके चारों तरफ बहुत भीड़ भी है पुलिस पंचनामा कर रही है l अचानक मुकेश की नजर लाश के दाहिने हाथ पर जाती है जिस पर कुछ लिखा हुआ होता है l जो सिर्फ उसने अपने पिताजी के हाथ पर देखा था, तभी वह जोर से चिल्लाया और बोला यह मेरे पिताजी हैं यह मेरे पिताजी हैं l पुलिस और आसपास की जमा भीड़ ने उस बच्चे की तरफ देखा l जब तक कुछ कह पाते तब तक मुकेश उस लाश के पास आकर खड़ा हो गया l
यह यकीनन मेरे पिताजी ही है l वहां भीड़ में उपस्थित हर कोई हैरान था l बच्चे के घरवाले व नाते -रिश्तेदार भी यह खबर सुनकर पहुंचे l मगर सब ने उस लाश को पहचानने से इंकार कर दिया l मगर मुकेश अपने पिताजी को भूलने की कैसे भूल कर सकता है आखिर अपने पिताजी का एकलौता पुत्र जो ठहरा,.,,f