अगली सुबह 15 फरवरी को राकेश बलवाल आत्मघाती हमले की जगह खड़े, उस बस के धातु के कचरे को देख रहे थे, जिसे निशाना बनाया गया था। उनके चारों ओर फोरेंसिक और विस्फोटक विशेषज्ञ किसी सबूत के लिए इलाके का चप्पा-चप्पा छान रहे थे। बलवाल, आई.पी.एस. में मणिपुर कैडर के एक अधिकारी थे। उन्होंने जुलाई 2018 में जम्मू-कश्मीर एन.आई.ए. (नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी) प्र- मुख के रूप में कार्यभार सँभाला।
वर्ष 2009 में एन.आई.ए. की स्थापना अमेरिका के फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफ.बी.आई.) की तर्ज पर की गई थी, ताकि अंतर- राष्ट्रीय स्तर की छानबीन करने में आसानी हो। 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद इसे एक्ट ऑफ पार्लियामेंट' के अधीन लाया गया। एजेंसी से शुरुआती दिनों से जुड़े एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि किस तरह अंतरराष्ट्रीय फोरमों में भारत की ओर से आतंकियों या आतंकवादी संगठनों के बारे में जमा की गई फाइलों को पुख्ता सबूत न होने की वजह से रद्द कर दिया जाता था। वे याद करते हैं, "हम सीमा- पार आतंकवाद के बारे में जो भी छानबीन करते, उसका मजाक उड़ाया जाता। वे कहते कि हमारी फाइलें विकिपीडिया एंट्री जैसी लगती थीं।" एन.आई.ए. को भारत के श्रेष्ठ पुलिस दलों में से चुने गए अधिकारियों के लिए जाना जाता था, जो पुलवामा हमले जैसे महत्त्वपूर्ण मामलों पर काम करती थी और सजा दिलवाने के लिए पुख्ता सबूत भी पेश करती थी।
बलवाल की उम्र पैंतीस के लगभग रही होगी, वे अपने बाल छोटे ही रखना पसंद करते थे। वे फिट बने रहने के लिए दोड़ना पसंद करते थे और अपने काम की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अकसर अपने परिवार के साथ हाइकिंग के लिए जाते। राज्य के पत्रकारों के बीच वे बहुत अच्छी प्रतिष्ठा रखते थे।
अक्तूबर 2017, मणिपुर के चूड़चंद्रपुर जिले के पुलिस प्रमुख के रूप में बलवाल एक अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ करने में कामयाब रहे, जिससे म्यांमार से चौदह लड़कियों को बचाया जा सका। उत्तर-पूर्व में आतंकवाद के जटिल जाल को सुलझाने में उनके अनुभव को देखते हुए ही, एन.आई.ए. में उन्हें प्रमुख पद सौंपा गया। वे जम्मू से ही थे और उस राज्य को अच्छी तरह जानते थे। बलवाल की उम्र पैंतीस के लगभग रही होगी, वे अपने बाल छोटे ही रखना पसंद करते थे। वे फिट बने रहने के लिए दौड़ना पसंद करते थे और अपने काम की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अकसर अपने परिवार के साथ हाइकिंग के लिए जाते। राज्य के पत्रकारों के बीच वे बहुत अच्छी प्रतिष्ठा रखते थे। कश्मीर में वे जल्द ही जम्मू के ऐसे अधिकारी के रूप में प्रसिद्ध होनेवाले थे, जो पुलवामा हमले के अपराधियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गए थे। उस दिन सबह पलवामा हाईवे पर खडे बलवाल ने गहरी उदासी महसस की।