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होली

9 मार्च 2018

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'सौरव अपने रूम में पढा़ई कर रहा था।उसके सैंमसग 2100 की घंटी बजती है। 'सौरव प्रणाम कर रहा हूँ पिताजी।' सौरव ने फोन पर ही पैर छूने का अभिनय किया। 'जीते रहो और बताओ कैसी चल रही है पढ़ाई।' उसके पिता ने कड़क आवाज में कहा। 'अच्छी हो रही है पिताजी।' सौरव ने अपराघ भाव से कहा। '29 के तो हो गये हो अब और कितनी देर। जल्दी से तुम कोई सरकारी नौकरी लो तो तुम्हारा शादी-ब्याह के बारे में भी सोचे।अगर नही होता है तो छोड़ दो और प्राईवेट में ही अपनी जिन्दगी बनाओ।' 'नही इस साल मैं किसी तरह निकाल लूगाँ।' 'और हाँ तुम्हारी अम्मा तुम्हें याद कर रही थी।इस होली में तुम घर आ रहे हो या नही।' उसके पिता ने फोन को दूसरी कान में रखकर कहा।' घर का रास्ता तो जैसे भूल ही गया है पता नही वहाँ पढा़ई करता है या मेरा पैसा उड़ा रहा है।' उसके पिता ने स्वयं से बड़बडा़या। होली की बात सुनते ही सौरव अपनी पिछली होली में चला गया। 'हैप्पी होली चाचाजी।' सौरव ने अपने दोस्त के पिता को रंग लगाते हुए कहा। 'हैप्पी होली बेटा! मेरा बेटा बैंक में नौकरी कर रहा है।हर महीने ₹30000 उठाता है। तुम भी जल्दी से नौकरी ले लो तब तुम दोनों दोस्त भी सरकारी नौकरी वाले कहलाओगे।' 'सौरव कब तक ले रहे हो नौकरी?' सौरव की बुआ ने कहा। होली के अवसर पर वह अपने पीहर आई थी। 'एक-दो साल के अंदर ले लूँगा फुआ।' 'उम् निकल रही है तुम्हारी। भैया की नौकरी भी कुछ साल में समाप्त होने वाली है। कब तक खिलाएँगें वे तुम्हें।' 'सौरव! सौरव! हेलो! फोन कट गया क्या? उसके पिता के ये शब्द उसे इसे वापस इस होली में ले आए। 'हा पिताजी मेरी तबीयत कुछ ठीक नही है।ऐसे में इतना सफर नही हो पाएगा।' सौरव ने सफेद झुठ कहा। कोई बात नही दिपावली मे आ जाना, तुम्हारी अम्मा को मैं समझा दूँगा। और हाँ नौकरी जल्दी लो।' 'हम्म।' दोनों ने काँल समाप्त की। समाप्त

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