चन्द लाइनें मेरे उन भाईयों कि लिये जो परदेश मे रह रहे है ॥
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ऐ माँ तेरे आँचल की ओ याद बहुत आती है ।
जँहा पे खेला बचपन वो छाँव बहुत भाती है ॥
ताल तलैया आम की बगिया ,जँहा पे खेला बचपन है ।
वो हिन्दुस्तान की माटी हमको याद बहुत आती है ॥
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सुबह सुबह वो दूध भात माँ जब तू हमे खिलाती थी ।
मेरे तन को रगड रगड माँ सागर पे नहलाती थी ॥
बाबा का हाथ पकड कर माँ जब हमने चलना सीखा था ।
वो गिर कर उठना उठ कर गिरना याद बहुत आती है ।
वो हिन्दुस्तान की माटी माँ याद बहुत आती है ॥
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वो दादी माँ की लाठी जब हम. चुरा छुपा कँहि देते थे ।
फिर दादी अम्मा तैस मे आकर तुमको गुस्सा करती थी ॥
माँ मै तेरे आँचल मे आकर. छुप जाया करता था ।
वो दादी माँ का रूठ रूठ कर हँसना याद सताती है ॥
वो हिन्दुस्तान की माटी माँ याद बहुत आती है ॥
,,अनिल साकेपुरी